कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 1 मार्च 2012

दोहा सलिला: होली हो अबकी बरस --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:

होली हो अबकी बरस

संजीव 'सलिल'

*

होली होली हो रही, होगी बारम्बार.
होली हो अबकी बरस, जीवन का श्रृंगार.१.

होली में हुरिया रहे, खीसें रहे निपोर.
गौरी-गौरा एक रंग, थामे जीवन डोर.२.

होली अवध किशोर की, बिना सिया है सून.
जन प्रतिनिधि की चूक से, आशाओं का खून.३.

होली में बृजराज को, राधा आयीं याद.
कहें रुक्मिणी से -'नहीं, अब गुझियों में स्वाद'.४.

होली में कैसे डले, गुप्त चित्र पर रंग.
चित्रगुप्त की चतुरता, देख रहे सबरंग.५.

होली पर हर रंग का, 'उतर गया है रंग'.
जामवंत पर पड़ हुए, सभी रंग बदरंग.६.

होली में हनुमान को, कहें रंगेगा कौन.
लाल-लाल मुँह देखकर, सभी रह गए मौन.७.

होली में गणपति हुए, भाँग चढ़ाकर मस्त.
डाल रहे रंग सूंढ़ से, रिद्धि-सिद्धि हैं त्रस्त.८.

होली में श्री हरि धरे, दिव्य मोहिनी रूप.
ठंडाई का कलश ले, भागे दूर अनूप.९.

होली में निर्द्वंद हैं, काली जी सब दूर.
जिससे होली मिलें हो, वह चेहरा बेनूर.१०.

होली मिलने चल पड़े, जब नरसिंह भगवान्.
ठाले बैठे  मुसीबत गले पड़े श्रीमान.११.

************


 

5 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

रंग भरी सुन्दर रचना... आभार

- mstsagar@gmail.com ने कहा…

- mstsagar@gmail.com


गुझियों में स्वाद आये चाहे न आये ,
दोहे मनभावन है -इस टिप्पणी के साथ ,
'चित्रगुप्त चतुर सुजान ,नरसिंह कछु जानत नैयाँ,
चित्रगुप्त के द्वै कान ,नरसिंह के कान ही नैयाँ ' |
( बुन्देली की एक पहेली पर आधारित )
महिपाल,१/३/१२,ग्वालियर

ksantosh_45@yahoo.co.in ने कहा…

santosh kumar ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita



वाह! सलिल जी, होली के दोहों मे घुले रँगों ने मन को सराबोर कर दिया। एक नये तेवर लिए दोहे बहुत भाए। बधाइयाँ।
सन्तोष कुमार सिंह

dkspoet@yahoo.com ने कहा…

dks poet ✆ekavita


आदरणीय सलिल जी,
हास्य के रंग से रंगीन दोहों के लिए साधुवाद
सादर

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

kusum sinha ✆ ने कहा…

kusum sinha ✆ ekavita


priy sanjiv ji
bahut sundar ati sundar badhai
kusum