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सोमवार, 19 मार्च 2012

होली का रंग रोटेरियन के सँग --संजीव 'सलिल'

होली का रंग रोटेरियन के सँग
संजीव 'सलिल'
*
रोटेरियन का ब्याह भया तो, हमें खुसी भई खासी.
नाच रहे पी झूम बाराती, सुन-गा भीम पलासी..
मैके जाती भौजी ने, चुपके से हमसे पूछा-
'इनखों ख़त में का लिक्खें?' बतलाओ सुने न दूजा..
मैं बोलो: 'प्रानों से प्यारे' सबसे पहले लिखना.
आखिर में 'चरणों की दासी', लिख ख़त पूरा करना..
पत्र मिला तो रोटेरियन पर छाई गहन उदासी.
हमने पूछो: 'काय! भओ का? बोले आफत खासी.
'चरणदास' लिख बिनने भेजी, चिट्ठी सत्यानासी.
कोढ़ खाज में, लिखो अंत में' प्रिय-प्रानों की प्यासी'..
*
जो तुरिया रो-रो टरी, बाखों जम गओ रंग.
रुला-झिंकाकर खसम खों, कर डरो बदरंग.

कलप-कलपकर क्लब बना, पतिगण रोना रोंय.
इक-दूजे के पोंछकर आँसू, मुस्का सोंय..

जे 'आ-आ' हँस कह रहीं, बे 'हट-हट' कह मौन.
आहत-चाहत की ब्यथा-कथा बताये कौन?

अंग्रेजी के फूल ने, दे हिंदी का फूल.
फूल बनाकर सच कहा, चुभा शूल तज भूल..

खोते सिक्के चल रहे, खरे चलन से दूर.
भाभी की आरति करें, भैया बढ़ता नूर..
*
पिटता पति जितना अधिक, उतना जाता फूल.
वापरती पत्नी अगर, टूट जाए स्टूल.

कभी गेंद, बल्ला कभी बलम बाने स्टंप.
काँधे चढ़कर मरती, पत्नि ऊँचा जंप..

करते आँखें चार जब, तब थे उनके ठाठ.
दोनों को चश्मा चढ़ा, करते आँखें आठ..
*
फागुन में गुन बहुत हैं, लाया फाग-अबीर.
टिके वही मैदान में, जिसके मन में धीर..
जिसके मन में धीर, उसे ही संत कहेंगे.
दीक्षित जो बीवी से, उसको कंत कहेंगे.
तंत न भिड़ पिटने में, चापो चरण शगुन में.
रोटेरियन धोते हैं धोती हँस फागुन में..
*Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada

6 टिप्‍पणियां:

mahipal ने कहा…

Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा yahoogroups.com 19 मार्च ekavita


वाह वाह -,
महिपाल ,१९/३/१२

kamal ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

19 मार्च ekavita


आ० आचार्य जी,
सुन्दर हास्य । रोटेरियन की टांग खींची खासी / होली का रंग अभी नहीं हुआ बासी ।
आपको ढेर बधाई !

कमल

achal verma ने कहा…

achal verma ✆19 मार्च
ekavita


आपकी हरएक कविता है धूम मचा जाती
बात कही रोकर के जो भी वही हंसी बन जाती

( रोटेरियन यानी रोते हुए )
Achal Verma

mahipal ने कहा…

Mahipal Singh Tomar ✆

19 मार्च (1 दिन पहले)

मुझे
आ.सलिल जी ,
निर्विवाद रूप से आप ई-कविता के स्थापित ,मान्य स्तम्भ है |
अनेक विधाओं में पारंगत है | पहिली पठंत में वाह के अलावा
कुछ नहीं सूझा ,पर एक बार पुनः पढने पर ,लगा आपको अवगत
कराऊँ ,जैसा मैंने महसूस किया |





रोटेरियन का ब्याह भया तो, हमें खुसी भई खासी.

नाच रहे पी झूम बाराती, सुन-गा भीम पलासी..

मैके जाती भौजी ने, चुपके से हमसे पूछा-
'इनखों ख़त में का लिक्खें?' बतलाओ सुने न दूजा..( कहो )

('इनखों चिठिया का लिखें ' सो कहो सुने न दूजा ) मेरी समझ में
कटनी-जबलपुरी बुन्देली भी है ,और शायद प्रवाह भी है |

मैं बोलो: 'प्रानों से प्यारे' सबसे पहले लिखना
आखिर में 'चरणों की दासी', लिख ख़त पूरा करना..
पत्र मिला तो रोटेरियन पर छाई गहन उदासी.
हमने पूछो: 'काय! भओ का? बोले आफत खासी.
'चरणदास' लिख बिनने भेजी, चिट्ठी सत्यानासी.
कोढ़ खाज में, लिखो अंत में' प्रिय-प्रानों की प्यासी'..
*
जो तुरिया रो-रो टरी, बाखों जम गओ रंग. ( बाको =उसका !)

--------------------- बाको जम गओ रंग

रुला-झिंकाकर खसम खों, कर डरो बदरंग.(ये तो टंकण त्रुटि है)

-------------------------- कर डारो बदरंग .

कलप-कलपकर क्लब बना, पतिगण रोना रोंय.
इक-दूजे के पोंछकर आँसू, मुस्का सोंय..

जे 'आ-आ' हँस कह रहीं, बे 'हट-हट' कह मौन.
आहत-चाहत की ब्यथा-कथा बताये कौन?

अंग्रेजी के फूल ने, दे हिंदी का फूल.
फूल बनाकर सच कहा, चुभा शूल तज भूल..

खोते सिक्के चल रहे, खरे चलन से दूर.( टंकण त्रुटि )

खोटे-------------------------------------

भाभी की आरति करें, भैया बढ़ता नूर..( भौजी क्यों नहीं यहाँ भी )

*
पिटता पति जितना अधिक, उतना जाता फूल.
वापरती पत्नी अगर, टूट जाए स्टूल.

कभी गेंद, बल्ला कभी बलम बाने स्टंप.(बने )

काँधे चढ़कर मरती, पत्नि ऊँचा जंप..

काँधें चढ़कर मारती,पत्नी ऊँचा जंप..


गुस्ताखी माफ़ -,

सादर,
महिपाल,१९/३/१२

sanjiv 'salil' ने कहा…

आदरणीय!
सादर नमन. टंकण और भाषा की इतनी सारी अशुद्धियाँ सुधारने के लिये आभार. एक और अशुद्धि मेरे देखने में आयी- तुरिया के स्थान पर टुरिया अर्थात लड़की है. वैसे तुरिया को पतुरिया से नि:सृत मानें तो अशुद्धि नहीं लगेगी.

amit tripathi ने कहा…

Amitabh Tripathi ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


आदरणीय आचार्य जी
आनंद आया आपकी इस रचना को पढ़ कर| ब्रजभूमि का ख़ासा प्रभाव है इस रचना में|
बधाई एवं साधुवाद!
सादर
अमित