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शुक्रवार, 30 मार्च 2012

मुक्तिका: --- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
*
अपनी गलती ढांक रहे हैं.
गप बेपर की हांक रहे हैं.

हुई एकता नारंगी सी.
अन्दर से दो फांक रहे हैं.

नित आशा के आसमान में
कोशिश-तारे टांक रहे हैं.

खैनी घिसें चुनावों में फिर
संसद में जा फांक रहे हैं.

औरों को आंका कम करके.
खुद को ज्यादा आंक रहे हैं.

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Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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