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शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

चित्रगुप्त जयंती पर विशेष भजन: प्रभु तेरी महिमा --संजीव वर्मा 'सलिल'




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* चित्रगुप्त जयंती पर विशेष भजन *
      प्रभु तेरी महिमा अपरंपार
         संजीव वर्मा 'सलिल' 
प्रभु तेरी महिमा अपरंपार...
*
तू सर्वज्ञ व्याप्त कण-कण में,
कोई न तुझको जाने.
अनजाने ही सारी दुनिया
इष्ट तुम्हें ही माने.
तेरी दया-दृष्टि का पाया
कोई न पारावार...
*
हर दीपक में ज्योति तिहारी,
हरती है अँधियारा.
हर परवाना जल जी जाता,
पा तेरा उजियारा.
आये कहाँ से?, जाएं कहाँ हम??
कैसे हो उद्धार?...
*
कण-कण में है बिंब तुम्हारा,
गुप्त चित्र अनदेखा.
चित्रगुप्त कहती है दुनिया
चित्र-गुप्त अनलेखा.
निराकार हो तुम, लेकिन हम
पूज रहे साकार...
***
         




3 टिप्‍पणियां:

achal verma ✆ ने कहा…

achal verma ✆

निराकार आकार बनाए
चित्रगुप्त वंसज कहलाए
जिन पर कृपा हुई है प्रभु की
उनका भाग्योदय हो जाए ।।
निराकार इसलिए कहा है
देख नहीं हम उनको पाते
पर उनके करते ही अपने
जग के सारे रिश्ते नाते ।।
निराकार ही नराकार में
इतना रूप बना फैला है
संभव नहीं देख पाना तो
चित्रगुप्त अब कहलाया है ।।


अचल वर्मा

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com ने कहा…

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com

आदरणीय आचार्य जी,
चित्रगुप्त जयंती पर अत्यंत प्यारा भजन-गीत के लिये साधुवाद !
अंतिम बंद ने बहुत मुग्ध किया |
सादर
कमल

deepti gupta ✆ ने कहा…

drdeepti25@yahoo.co.in


मुझे
अद्भुत , अनुपम , अप्रतिम !
शब्द लालित्य बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है
ढेर साधुवाद,
दीप्ति