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रविवार, 22 अप्रैल 2012

वयस्क साक्षरता प्रतिशत

वयस्क साक्षरता प्रतिशत - चीन ९३, भारत ६६

UNESCO द्वारा मई २००८ में प्रकाशित  विश्व साक्षरता के आँकड़े

यूनेस्को के अनुसार जिन १४५ देशों के लिए आँकड़े उपलब्ध हैं उनमें वयस्क साक्षरता दर का माध्य ८१.२% है. वयस्क साक्षरता दर यानी १५ साल या उससे बड़े लोगों की साक्षरता का प्रतिशत. ९०% से ऊपर की दर वाले ७१ देशों में से अधिकतर योरप, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया, और दक्षिण अमेरिका में हैं. जिन देशों का डाटा उपलब्ध नहीं है वहाँ भी दर ९०% से अच्छी ही होने की अपेक्षा है क्योंकि उनमें से अधिकतर विकसित देश हैं. पिछड़े देशों में से लगभग सभी या तो अफ़्रीका में है या दक्षिण एशिया में.

सबसे बड़े दो देश चीन और भारत अलग-अलग तस्वीर पेश करते हैं. चीन में जहाँ ९३.३% लोग पढ़-लिख सकते हैं, भारत में केवल ६६%. यह विश्लेषण समस्या के भौगोलिक वर्गीकरण पर केंद्रित है

इन्हीं आँकड़ों को भाषाई नज़रिये से देखें.

ये रहे शीर्ष १५ देश, उनका साक्षरता प्रतिशत, और उनकी आधिकारिक भाषाएँ:

एस्टोनिया - ९९.८% - एस्टोनियन, वोरो
लातविया - ९९.८% - लातवियन, लातगेलियन
क्यूबा - ९९.८% - स्पैनिश
बेलारूस - ९९.७% - बेलारूसी, रूसी
लिथुआनिया - ९९.७% - लिथुआनियन
स्लोवेनिया - ९९.७% - स्लोवेनियन
उक्रेन - ९९.७% - उक्रेनी
कज़ाख़िस्तान - ९९.६% - कज़ाख़
ताजिकिस्तान - ९९.६% - ताजिक
रूस - ९९.५% - रूसी
आर्मेनिया - ९९.५% - आर्मेनियन
तुर्कमेनिस्तान - ९९.५% - तुर्कमेन
अज़रबैजान - ९९.४% - अज़रबैजानियन
पोलैंड - ९९.३% - पोलिश
किरगिज़स्तान - ९९.३% - किरगिज़

और अब देखिये साक्षरता दर में नीचे के २० देश (भारत भी इनमें शामिल है):

भारत - ६६%  - अंग्रेज़ी, हिंदी
घाना - ६५% - अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषाएँ
गिनी बिसाउ - ६४.६% - पुर्तगाली
हैती - ६२.१% - फ्रांसीसी, हैती क्रिओल
यमन - ५८.९% - अरबी
पापुआ न्यू गिनी - ५७.८% - अंग्रेज़ी व २ अन्य
नेपाल - ५६.५% - नेपाली
मारिशियाना - ५५.८% - फ्रांसीसी
मोरक्को - ५५.६% - फ्रांसीसी, अरबी
भूटान - ५५.६% - अंग्रेज़ी, जोंग्खा
लाइबेरिया - ५५.५% - अंग्रेज़ी
पाकिस्तान - ५४.९% - अंग्रेज़ी
बांग्लादेश - ५३.५% - बांग्ला
मोज़ाम्बीक़ - ४४.४% - पुर्तगाली
सेनेगल - ४२.६% - फ्रांसीसी
बेनिन - ४०.५% - फ्रांसीसी
सिएरा लियोन - ३८.१% - अंग्रेज़ी
नाइजर - ३०.४% - अंग्रेज़ी
बरकीना फ़ासो - २८.७% - फ्रांसीसी
माली - २३.३% - फ्रांसीसी

क्या इन आंकड़ों से यह नहीं दिखता कि निचले अधिकतर देशों में आधिकारिक या शासन की भाषा आम लोगों द्वारा बोले जानी वाली भाषा से अलग (औपनिवेशिक) है, जबकि सर्वाधिक साक्षर देशों में शिक्षा का माध्यम और शासन की भाषा वही है जो वहाँ के अधिकतर लोग बोलते हैं अर्थात मातृभाषा  ?

यही एक कारण न हो तो हो तो भी यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है.  इसे  कुर्सीविराजित-विश्लेषण (आर्मचेयर एनैलिसिस) कहें तो भी क्या इस दिशा में गंभीरता से सोचना जरूरी नहीं है क्या?

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



4 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

vicharvimarsh


उपयोगी जानकारी के लिये आभारी हूँ
काश भारत सरकार की आँखें खुलें पर
क्या करें वहाँ जो बैठे हैं उन्हें हिंदी आती नहीं
और हिंदी न आने के लिये कोई अंकुश नहीं.
सदार जी तो वैसे ही हिंदी नहीं जानते और सोनिया
कि मातृभाषा इटालियन या अन्ग्रेज़ी है |
कमल

salil ने कहा…

सरदार जी को उनकी मातृभाषा पंजाबी और सोनिया जी को उनकी मातृभाषा आती है. वे उनका यथा स्थान उपयोग भी करते हैं. दोषी वे हैं जिनकी मातृभाषा हिंदी है पर वे इसे बोलने में हीनता अनुभव करते हैं.

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

vicharvimarsh


बहुत सही बात कही आपने, संजीव जी ! ये वो लोग हैं जो हिन्दी बोलने में हीन भावना महसूस करते हैं लेकिन उन्हें अंग्रजी भी नही आती ठीक से ! उथले लोग ही ऐसा दिखावा करते हैं ! इससे तो, कोई सी भाषा ठीक से सीख ले तो बेहतर रहे !

salil ने कहा…

इन लोगों की मानसिकता आज भी गुलामी के दौर की है. वे अपने विदेशी आकाओं की भाषा लिख-पढ़-बोल खुद को आम लोगों से श्रेष्ठ बताना चाहते हैं. हिंदी उनके लिये शासितों की भाषा है जबकि अंग्रेजी शासकों की,