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रविवार, 8 अप्रैल 2012

दोहा सलिला: सपने देखे रात भर --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
संजीव 'सलिल'
*
सपने देखे रात भर, भोर गये सब भूल.
ज्यों सुगंध से रहित हों, सने धूल से फूल..
*
स्वप्न सुहाने देखते, जागे सारी रैन.
सुबह पूछते हैं स्वजन, लाल-लाल क्यों नैन..
*
मिले आपसे हो गये, सब सपने साकार.
निराकार होने लगे, अब गुपचुप साकार..
*
जिनके सपनों में बसे, हम अनजाने मीत.
अपने सपनों में वही, बसे निभाने प्रीत..
*
तजें न सपने देखना, स्वप्न बढ़ाते मान.
गैर न सपनों में रहें, रखिये इसका ध्यान..
*
रसनिधि हैं, रसखान हैं, सपने हैं रसलीन.
स्वप्न रहित जग-जिंदगी, लगे 'सलिल' रसहीन..
*
मीरा के सपने बसे, जैसे श्री घनश्याम.
मेरे सपनों में बसें, वैसे देव अनाम..
*
स्वप्न न देखे तो लिखे, कैसे सुमधुर गीत.
पले स्वप्न में ही सदा, दिल-दिलवर में प्रीत..
*
स्वप्न साज हैं छेड़िए, इनके नाजुक तार.
मंजिल के हो सकेंगे, तभी 'सलिल' दीदार..
*
अपने सपने कभी भी, देख न पाये गैर.
सावधान हों रहेगी, तभी आपकी खैर..
*
अपने सपने कीजिये, कभी नहीं नीलाम.
ये अमूल्य-अनमोल हैं, 'सलिल' यही बेदाम..
*

5 टिप्‍पणियां:

shar_j_n@yahoo.com ने कहा…

फ़िर आपकी सपने trilogy पढ़ी :)
दोहों में सभी अच्छे हैं, ये बहुत सुन्दर!:
अपने सपने कीजिये, कभी नहीं नीलाम.
ये अमूल्य-अनमोल हैं, 'सलिल' यही बेदाम..

Rekha Rajvanshi ✆ ने कहा…

rekha_rajvanshi@yahoo.com.au द्वारा yahoogroups.com ekavita


आ० आचार्य जी
दोहे बहुत सुन्दर हैं, साधुवाद
रेखा

- pranavabharti@gmail.com ने कहा…

- pranavabharti@gmail.com
आ .सलिल जी
"गागर में सागर " दोहों की विशेषता है जो आपके प्रत्येक दोहे में अंकित है |
"लाल लाल क्यों नैन ,तजें न सपने देखना ,सपने बेदाम, करें नहीं नीलाम"आदि सुंदर प्रयोग |
सपनों की आपकी ये यात्रा साकार होने हेतु
अनेकानेक शुभकामनाएँ
प्रणव भारती

- pratapsingh1971@gmail.com प्रताप ने कहा…

- pratapsingh1971@gmail.com


आदरणीय आचार्य जी

बहुत सुन्दर दोहे.


रसनिधि हैं, रसखान हैं, सपने हैं रसलीन.
स्वप्न रहित जग-जिंदगी, लगे 'सलिल' रसहीन..
इसमे अनुप्रास की छटा और मोहक बना रही है.

साधुवाद !

सादर
प्रताप

kusum sinha ✆ ने कहा…

kusumsinha2000@yahoo.com ekavita


priy sanjiv ji
bahut sundar dohe badhai sweekar karen
kusum