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रविवार, 15 अप्रैल 2012

गीत: जिसने सपने देखे --संजीव 'सलिल'


गीत:
जिसने सपने देखे
संजीव 'सलिल'
*
 जिसने सपने देखे,
उसको हँसते देखा...
*
निशा-तिमिर से घिरकर मन ने सपना देखा.
अरुण उगा ले आशाओं का अभिनव लेखा..

जब-जब पतझर मिला, कोंपलें नव ले आया.
दिल दीपकवत जला, उजाला नव बिखराया..

भ्रमर-कली का मिलन बना मधु जीवनदायी.
सपनों का कंकर भी शंकर सम विषपायी..

गिरकर उठने के
सपनों का करिए लेखा.
जिसने सपने देखे,
उसको हँसते देखा...
*
सपने बुनकर बना जुलाहा संत कबीरा.
सपने बुने न लोई मति, हो विकल अधीरा..

सपने नव निर्माणों के बुनता अभियंता.
करे नाश से सृजन, देख सपने भगवंता..

मरुथल को मधुबन, 'मावस को पूनम करता.
संत अनंत न देखे, फिर भी उसको वरता..

कर सपना साकार
खींचकर कोशिश रेखा.
जिसने सपने देखे,
उसको हँसते देखा...
*

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