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सोमवार, 7 मई 2012

नीर-क्षीर दोहा यमक: मन राधा तन रुक्मिणी... --संजीव 'सलिल'

नीर-क्षीर दोहा यमक:
मन राधा तन रुक्मिणी...
संजीव 'सलिल'
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मन राधा तन रुक्मिणी, मीरां चाह अनाम.
सूर लखें घनश्याम को, जब गरजें घन-श्याम..
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अ-धर अधर पर बाँसुरी, उँगली करे प्रयास.
लय स्वर गति यति धुन मधुर, श्वास लुटाये हास..
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नीति देव की देवकी, जसुमति मृदु मुस्कान.
धैर्य नन्द, वासुदेव हैं, समय-पूर्व अनुमान..
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गो कुल का पालन करे, गोकुल में गोपाल.
धेनु रेणु में लोटतीं, गूँजे वेणु रसाल..
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मार सकी थी पूत ना, मरी पूतना आप.
जयी पुण्य होता 'सलिल', मिट जाता खुद पाप..
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तृणावर्त के शस्त्र थे, अनगिन तृण-आवर्त.
प्रभु न केंद्र-धुरि में फँसे, तृण-तृण हुए विवर्त..
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लिए वेणु कर-कालिया, चढ़ा कालिया-शीश.
कूद रहा फन को कुचल, ज्यों तरु चढ़े कपीश..
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रास न आया रचाना, न ही भुलाना रास.
कृष्ण कहें 'चल रचा ना' रास, न बिसरा हास..
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कदम-कदम जा कदम चढ़, कान्हा लेकर वस्त्र.
त्रस्त गोपियों से कहे, 'मत नहाओ निर्वस्त्र'..
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'गया कहाँ बल दाऊ जू?', कान्हा करते तंग.
सुरा पिए बलदाऊ जू, गिरे देख जग दंग..
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जल बरसाने के लिए, इंद्र करे आदेश.
बरसाने की लली के, प्रिय रक्षें आ देश..
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4 टिप्‍पणियां:

Mahipal Singh Tomar ✆ ने कहा…

mstsagar@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita


सुन्दर ,बधाई ,और माफ़ी के साथ ,
रेखांकित की खटक को ध्यान धरें ,कविराज
अमलतास भी धन्य है और धन्य ,कविराज |
सादर ,
महिपाल ,
अनाड़ी की ओर से -
( पवन झंकोरे झुला रहे, गा गाकर के छंद )

प्रेम पींग जितना बढे , उतना ही आनंद

Amar Jyoti ✆ ने कहा…

Amar Jyoti ✆ nadeem_sharma@yahoo.com

ekavita


मनोहर प्रकृति चित्रण!
बधाई!

achal verma ✆ ने कहा…

achalkumar44@yahoo.com

आचार्य सलिल :
इस लडैती का क्या अर्थ होगा यहाँ पर ?
बाकी कविता तो मधुर लगी पर इस लडैती ने व्यवधान कर दिया
पूरी कविता समझाने में ।




Achal Verma

salil ने कहा…

लडैती = लाडली का देशज पर्याय