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सोमवार, 21 मई 2012

नवगीत : जैसे इंटरनेट पर... धर्मेन्द्र कुमार सिंह

नवगीत : 
जैसे इंटरनेट पर...
धर्मेन्द्र कुमार सिंह 
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 नवगीत : जैसे इंटरनेट पर यूँ ही मिले पाठ्य... 



भीड़ भरे इस चौराहे पर
आज अचानक उसका मिलना
जैसे इंटरनेट पर यूँ ही
मिले पाठ्य पुस्तक की रचना

यूँ तो मेरे प्रश्नपत्र में यह रचना भी आई थी पर

इसके हल से कभी न मिलते मुझको वे मनचाहे नंबर
सुंदर सरल कमाऊ भी था
तुलसी बाबा को हल करना

रचना थी ये मुक्तिबोध की छोड़ गया पर भूल न पाया

आखिर इस चौराहे पर आकर मैं इससे फिर टकराया
आई होती तभी समझ में
आज न घटती ये दुर्घटना
 
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