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शनिवार, 2 जून 2012

दोहा गीत: धरती भट्टी सम तपी... --संजीव 'सलिल'

दोहा गीत:
धरती भट्टी सम तपी...
संजीव 'सलिल'
*

***
धरती भट्टी सम तपी,
सूरज तप्त अलाव.
धूप लपट लू से हुआ,
स्वजनों सदृश जुड़ाव...


बेटी सर्दी के करे,
मौसम पीले हाथ.
गर्मी के दिन आये हैं,
ले बाराती साथ..

बाबुल बरगद ने दिया,
पत्ते लुटा दहेज.
पवन उड़ाकर ले गया,
रखने विहँस सहेज..

धार पसीने की नदी,
छाँव बन गयी नाव.
बाँह थाम कर आस की,
श्वास पा रही ठाँव...
***

छोटी साली सी सरल,
मीठी लस्सी मीत.
सरहज ठंडाई चहक,
गाये गारी गीत..

घरवारी शरबत सरस,
दे सुख कर संतोष.
चटनी भौजी पन्हा पर,
करती नकली रोष..

प्याज दूर विपदा करे,
ज्यों माँ दूर अभाव.
गमछा अग्रज हाथ रख
सिर पर करे बचाव...
***

देवर मट्ठा हँस रहा,
नन्द महेरी झूम.
झूला झूले पेंग भर
अमराई में लूम..

तोता-मैना गा रहे,
होरी, राई, कबीर.
ऊषा-संध्या ने माला,
नभ के गाल अबीर..

थकन-तपन के चढ़ गाये-
आसमान पर भाव.
बेकाबू होकर बजट
देता अनगिन घाव...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in






6 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आ० आचार्य जी ,
आपकी निराली शैली में ग्रीष्म के नजारों का वर्णन पढ़ कर
मजा आ गया | हास्य व्यंग की चुटकियों के साथ सुन्दर
रचना हेतु साधुवाद !
सादर
कमल

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


कविवर, अति-सरस !
सादर,
दीप्ति

vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


बहुत सुन्दर ! साधुवाद !

विजय

Mukesh Srivastava ✆ ने कहा…

Mukesh Srivastava ✆

आचार्य जी,
रचना और प्रस्तुति दोनों शानदार,
ज्ञानवर्धक और रोचक भी
काव्य धरा के लिए एक धरोहर सी
बहुत बहुत बधाई
मुकेश इलाहाबादी

PRAN SHARMA ने कहा…

SUNDAR DOHON KE LIYE AAPKO BADHAAEE.

pran sharma, UK ने कहा…

PRAN SHARMA

SUNDAR DOHON KE LIYE AAPKO BADHAAEE.



PRAN SHARMA