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शुक्रवार, 15 जून 2012

दोहा सलिला: बेहतर रच नग्मात..... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
बेहतर रच नग्मात.....
संजीव 'सलिल'
*
जिसकी जैसी सोच है, वैसा देखे चित्र.
कोई लिए दुर्गन्ध है, कोई चाहता इत्र..

कौन किसी से कब कहाँ, क्या क्यों कहता बात.
जो सोचे हो परेशां, बेहतर रच नग्मात..

*
नीलम आभित गगन पर, बदरी छाई आज.
शुभ प्रभात है वाकई, मिटे ग्रीष्म का राज..

मिश्रा-मिश्राइन मिले, मिश्री बाँटी खूब.
पहुँचायें कुछ 'सलिल' तक, सके हर्ष में डूब..

लखनौआ  तहजीब को, बारम्बार सलाम.
यह तो खासुलखास है, भले खिलाये आम..
*
प्रीति मिले तो हो सलिल, खुशियों की बरसात.
पूनम जैसी चमकती, है अंधियारी रात..

रहे प्रीति के साथ नित, हो धरती पर स्वर्ग.
बिना स्वर्गवासी हुए, सुख पाए संवर्ग..

दूर प्रीति से ज़िन्दगी, हो जाती बेनूर.
रीति-नीति है भीति से, रहिए दूर हुजूर..

हूर दूर रहती 'सलिल', तनिक न आती काम.
प्रीति समीप सदा रहे, मिल जाती बिन दाम..

सूरत क्यों देखे 'सलिल', सीरत से रख चाह.
कविता कर जी भर विहँस, तज जग की परवाह..

बाँट सके जो प्रीति वह, पाता आत्म-प्रकाश.
बाँहों में लेता समा, वह सारा आकाश..

सूरत-सीरत प्रीति पा, हो जाती जब एक.
दीखता तभी अनेक में, उसको केवल एक ..

प्रीति न चाहे निकटता, राधा-हरि थे दूर.
अमर प्रीति गाते रहे, 'सलिल' निरंतर सूर..

प्रीति करें जिससे रखें, उससे कोई न चाह.        
सबसे ज्यादा कीजिए, उसकी ही परवाह..

आप चाहते हैं जिसे, चाहें दिल से खूब.
यह न जरूरी बाँह में, आ पाये महबूब..

प्रीति खो गयी है कहाँ, कहो बताये कौन.
'सलिल' प्रीति बिन मत करो, कविता हो अब मौन..

जो सूरत रब ने गढ़ी, हर सूरत है खूब.
दिया तले तम दे भुला, जा प्रकाश में डूब..

कब आयें आकाश में, झूम-झूम घन श्याम.
गरज-गरज बरसें 'सलिल', ग्रीष्म हरें घनश्याम..

अच्छे को अच्छा लगे, सारा जग है सत्य.
जिसे न कुछ अच्छा लगे, वह है निरा असत्य..

************

4 टिप्‍पणियां:

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara

बहुत ही शानदार और जानदार दोहे...... अनन्य बधाई और साधुवाद!
सूरत-सीरत प्रीति पा, हो जाती जब एक.
दीखता तभी अनेक में, उसको केवल एक ..

प्रीति न चाहे निकटता, राधा-हरि थे दूर.
अमर प्रीति गाते रहे, 'सलिल' निरंतर सूर.

आप चाहते हैं जिसे, चाहें दिल से खूब.
यह न जरूरी बाँह में, आ पाये महबूब

उदात्त भाव से भरपूर मन को मोहते दोहे .....!

सादर,
दीप्ति
मन से प्रीति कीजिए, तन को जाएँ भूल
जो मन से प्रीति करे, मिलती उसको नूर


यहाँ 'नूर' के अनेक अर्थ लगा सकते हैं पाठक , अपनी - अपनी भावना और पसंद के अनुरूप ! जैसे :
नूरे-जहां (नूरजहां), नूरे-दिल, नूरे-नज़र ,नूरे-चश्म,

- pindira77@yahoo.co.in ने कहा…

- pindira77@yahoo.co.in

aadarniiy salil ji,

aapne college ke dinon kii yaad dila di .bihari sur sab aankhon ke samne nachne lage. dohe jo mn bhae,man men priit jagae. shubh kamnaen svikar kiijie. man prasann ho gaya. indira

achal verma ✆ekavita ने कहा…

प्रीति है भगवान् का सबसे अनोखा रूप
जो करे संचार तन में चेतना की धूप ।। अचल

आपके कविता में एक ऐसा रस मिलता है की एक सांस में अंत तक पढ़े बिना चैन नहीं मिलता ।
अचल वर्मा

vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


बाँट सके जो प्रीति वह, पाता आत्म-प्रकाश.
बाँहों में लेता समा, वह सारा आकाश..
इतना सच दो पंक्तियों में ! बधाई ।

विजय