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शनिवार, 16 जून 2012

जागरण गीत: क्यों सो रहा..... संजीव 'सलिल'

जागरण गीत:
क्यों सो रहा.....
संजीव 'सलिल'
*
क्यों सो रहा मुसाफिर,
उठ भोर रही है.
चिड़िया चहक-चहककर,
नव आस बो रही है.
*
मंजिल है दूर तेरी,
कोई नहीं ठिकाना.
गैरों को माने अपना-
तू हो गया दीवाना.
आये घड़ी न वापिस
जो व्यर्थ खो रही है...
*
आया है हाथ खाली,
जायेगा हाथ खाली.
नातों की माया नगरी
तूने यहाँ बसा ली.
जो बोझ जिस्म पर है
चुप रूह ढो रही है...
*
दिन सोया रात जागा,
सपने सुनहरे देखे.
नित खोट सबमें खोजे,
नपने न अपने लेखे.
आँचल के दाग सारे-
की नेकी धो रही है...
*

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



4 टिप्‍पणियां:

vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


सुन्दर गीत के लिए साधुवाद ।

विजय

Ravi Bohra ने कहा…

Ravi Bohra

sundar

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita


प्रणाम सलिल जी,
बहुत २ सुंदर उदगारों के लिए आपको नमन

सबमें स्नेह लुटाकर देखें,
कुछ तो सब मिल गाकर देखें|
उम्र करे है लुक छिप सबसे ,
जागें और जगाकर देखें||

मैं जानती हूँ बहुत कुछ 'मिस ' किया है |संभवत; अभी और भ़ी करना होगा|
समय के साथ धीरे२ खोलूँगी और मन की आँखें भरने की चेष्टा करूंगी|

सादर
प्रणव भारती

santosh kumar ✆ ने कहा…

ksantosh_45@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com ekavita


आ०सलिल जी
अति सुन्दर गीत के लिए बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह