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सोमवार, 4 जून 2012

मुक्तक: -- संजीव 'सलिल'

मुक्तक
संजीव 'सलिल'
*
१.
हे विधि हरि हर प्यारे भारत को देना ऐसी औलाद.
मक्खन जैसा मन हो जिसका, तन हो दृढ़ जैसे फौलाद.
बोझ न हो जो इस धरती पर, बने सहारा औरों का-
हर्ष लुटाये, दुःख-विषाद जो विहँस सके कंधों पर लाद..
२.
भारत आत्म प्रकाशित होकर सब जग को उजियारा दे.
हर तन को घर आँगन छत दे, मन को भू चौबारा दे.
जड़-चेतन जो जहाँ रह रहे, यथा-शक्ति नित काम करें-
ऐसा जीवन जी जायें जो जन्म-जन्म जयकारा दे..
३.
कंकर में शंकर को देखें, प्रलयंकर से सदा डरें.
किसी आँख के आँसू पोछें, पीर किसी की तनिक हरें.
ज्यादा जोड़ें नहीं, न ही जो बहुत जरूरी वह तज दें-
कर्म-धर्म का मर्म जानकर, जीवन-पथ पर शांति वरें..
४.
मत-मत में अंतर को कोई मंतर दूर न कर सकता.
मन-मन में कुछ भेद न हो सत्पथ कोई भी वर सकता.
तारणहार न कोई पराया, तेरे मन में ईश्वर है-
दीनबंधु बन नर होकर भी तू सुरत्व को वर सकता..
५.
कण-कण में भगवान समाया, खोजे व्यर्थ दूर इंसान.
जैसे थाली में परसे तज, चित्रों में देखे पकवान.
सदय रहे औरों पर, दुःख-तकलीफें गैरों की हर ले-
सुर धरती पर आकर नर का, स्वयं करे बरबस गुणगान..
*


Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



4 टिप्‍पणियां:

- kanuvankoti@yahoo.com ने कहा…

- kanuvankoti@yahoo.com

कण-कण में भगवान समाया, खोजे व्यर्थ दूर इंसान.
जैसे थाली में परसे तज, चित्रों में देखे पकवान.
सदय रहे औरों पर, दुःख-तकलीफें गैरों की हर ले-
सुर धरती पर आकर नर का, स्वयं करे बरबस गुणगान..

आप तो आज की सदी के कबीर लग रहे हैं. क्या खूब मुक्तक लिखे हैं भाई ....,
अनन्य सराहना के साथ,
सादर,
कनु

- shishirsarabhai@yahoo.com ने कहा…

आदरणीय सलिल जी,

बहुत सुगढ़ मुक्तक ......बड़े ही मनभावन .

साधुवाद !
सादर,
शिशिर

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com ने कहा…

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com yahoogroups.com kavyadhara


आ० आचार्य जी ,
प्रेरणास्पद सरल सार्थक मुक्तकों के लिये साधुवाद !
विशेष -
कंकर में शंकर को देखें, प्रलयंकर से सदा डरें.
किसी आँख के आँसू पोछें, पीर किसी की तनिक हरें.
ज्यादा जोड़ें नहीं, न ही जो बहुत जरूरी वह तज दें-
कर्म-धर्म का मर्म जानकर, जीवन-पथ पर शांति वरें..
सादर
कमल

drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

deepti gupta ✆ drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


आदरणीय संजीव जी,
यूं तो सभी मुक्तक उत्तम हैं लेकिन यह बहुत अच्छा लगा -

भारत आत्म प्रकाशित होकर सब जग को उजियारा दे.
हर तन को घर आँगन छत दे, मन को भू चौबारा दे.
जड़-चेतन जो जहाँ रह रहे, यथा-शक्ति नित काम करें-
ऐसा जीवन जी जायें जो जन्म-जन्म जयकारा दे..
अमित सराहना के साथ,
सादर,
दीप्ति