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सोमवार, 16 जुलाई 2012

स्मरण: साहिल सहरी --आदिल रशीद

स्मरण:

साहिल सहरी

आदिल रशीद
 



Aadil Rasheed

*
मैं लौटने के इरादे से जा रहा हूँ मगर 
सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना ..  साहिल सहरी
हिंदी उर्दू साहित्य मे दिलचस्पी रखने वाला शायद ही कोई  शख्स हो जिस ने ये शेर न सुना हो ये मशहूर शेर साहिल सहरी नैनीताली का है जिन्होंने कभी दिमाग  का कहना नहीं माना, हमेशा दिल का कहना ही किया उसी दिल ने आज उनके साथ बेवफाई की और धड़कन बंद हो जाने के सबब आज सुब्ह ८.30 बजे  उनका निधन हो गया... अल्लाह उन्हें जन्नत मे ऊँचा  मुकाम अता फरमाए.
साहिल सहरी का जन्म 4  नवम्बर 1949   को नैनीताल में हुआ उनका असली नाम रहीम खान था. उनके पिता रहमत अली खान भी एक उस्ताद शायर थे और अह्कर देहलवी तखल्लुस फरमाते थे. उनकी माँ और साहिल सहरी की दादी पुरानी दिल्ली के एक इल्मी अदबी बाजौक घराने से तआल्लुक रखती थी. इसलिए उन्होंने अपने तखल्लुस में नैनीताल के होते हुए भी दिल्ली की निस्बत को प्राथमिकता दी. इस तरह ये बात दलील के साथ कही जा सकती है कि साहिल सहरी को शायरी का ज्ञान विरासत में मिला और शायरी उनके खून में शामिल थी.
साहिल सहरी के लिए यह बात कही जा सकती है की जो लोग उनके पास उठे-बैठे वो शायर हो गए तो भला साहिल सहरी साहिब की पत्नि उनके प्रभाव से कैसे बचतीं साहिल सहरी की पत्नि निशात साहिल ने भी उनके रहनुमाई में बड़ी पुख्ता शायरी की है. उनकी औलादों में 6   बेटियां, 1 बेटा है. एक बहुत पुरानी कहावत है कि  मछली के बच्चों को तैराकी सीखनी नहीं पड़ती, ये हुनर उनमें  पैदाइशी होता है. साहिल सहरी की औलादों में भी शायरी के गुण पाये गये. उनकी बेटियों ने वालिद के नक़्शे-क़दम पर चलते हुए हमेशा मेआरी शायरी की है. उनकी एक बेटी तरन्नुम निशात ने अपने मेंआरी कलाम से अदब की खूब खिदमत की और शादी के बाद अपने परिवार को समय देने के  कारण खुद को मुशायरों से दूर कर लिया लेकिन शेर अब भी कहती हैं. उनकी छोटी बेटी नाजिया सहरी इस समय  मुशायरों में बहुत कामयाब शायरा है तथा पूरे भारत में उनको पसंद किया जाता है.
मरहूम साहिल सहरी से मेरी बड़ी कुर्बत थी. वे हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते थे और जब देहली आते तो ज़रूर मुलाक़ात करते. उनसे मेरी  पहली मुलाक़ात तब हुई थी जब मैंने और हामिद अली अख्तर ने एक कुल हिंद मुशायरा बा उनवान "एक शाम डाक्टर ताबिश मेहदी के नाम" दिल्ली में कराया था. इसमें साहिल सहरी के शागिर्द मशहूर शायर और नाज़िमे मुशायरा एजाज़ अंसारी ने उन्हें आमंत्रित किया था. वे अपने बेहद अज़ीज़ शागिर्द जदीद लहजे के मुनफ़रिद शायर व् कवि और उत्तरांचल पावर कारपोरेशन में  DGM  के पद पर कार्यरत जनाब इकबाल आज़र के साथ तशरीफ़ लाये थे. इकबाल आज़र साहेब में एक खास बात यह है की वे ब यक वक़्त उर्दू और हिंदी भाषा में शायरी करते हैं जो की एक व्यक्ति का दायें और बाएं हाथ से लिखने जैसा बेहद कठिन काम है लेकिन इकबाल आज़र  साहेब उसको उतनी ही आसानी से कर लेते है जितनी आसानी से नट रस्सी पर सीधा चलता है.
साहिल सहरी साहब ने मुझे बहुत से मुशायरों में खुद भी बुलाया और  दूसरी जगह भी प्रमोट किया, यह कह कर कि   "अच्छी शायरी  को अच्छे  लोगों तक पहुंचना चाहिए. यह हम अदीबों की ज़िम्मेदारी है. मैं स्वयं  भी और मेरी टूटी-फूटी शायरी भी उनके इस सच्चे जज्बे की हमेशा ममनून रहेगी. मरहूम बड़े साफ़ दिल, बड़ी साफ़-साफ़ बात करने वाले इंसान थे किसी तरह की मसलहत और गीबत को बिलकुल पसंद नहीं करते थे.
एक बार उनका यही मिसरा " सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना" तरही के तौर पर दिया गया जिस पर मैं ने कुछ यूँ गिरह लगायी जो उनके इस बड़े शेर से बिलकुल उलट थी के
ये बात सच है मगर कह के कौन जाता है 
" सफ़र सफ़र है मेरा इंतज़ार मत करना"
                                                                                                               - आदिल रशीद,2005
 कुछ "अजब से लोगों ने"  कुछ "अजब से अंदाज़" में उनको ये शेर सुनाया और उनको "कुछ अजब" से मतलब समझाने चाहे. उन्होंने उन्हें कोई भी उत्तर दिए बिना जेब से मोबाइल निकालकर उन लोगों के सामने ही मुझे फ़ोन लगाया और आदत अनुसार हँसते हुए कहा "बरखुरदार मुबारक हो हमारा रिकॉर्ड तोड़ दिया". मैं सटपटा गया और घबराते हुए मैं ने कहा  "उस्ताद मैं समझा नहीं" तो उन्होंने हँसते हुए बगैर किसी का नाम लेते हुए कहा "कुछ लोग मुझे  तुम्हारा ये शेर सुना रहे हैं जो तुमने मेरे मिसरे पर मिसरा लगाया है, मैं ने सोचा के तुमने अच्छा काम किया है तो इनके सामने ही तुम्हें  मुबारकबाद दे दूँ". मेरे उस वक़्त भी और बाद में भी कई कई बार इल्तिजा करने पर भी उन्होंने मुझे उन "अजीब से लोगों" के नाम कभी नहीं बताये और अब अगर वो उनके नाम बताना भी चाहें तो बता नहीं सकते क्योंकि रूहें बोलती नहीं. उनको  अपनी बात कहने के लिये जिस्म  की ज़रुरत होती है और जिस्म तो आज सुपुर्दे खाक हो गया.
मैं ने जब-जब उनसे ऐसे "अजीब आदमी नुमा प्राणियों" के विषय में बात की उन्होंने यही कहा 'आदिल मियां तुम अपना काम {साहित्य सेवा} करते रहो इस साहित्य के सफ़र में तुमको अभी बहुत से अजीब अजीब प्राणी मिलेंगे'.

साहिल सहरी भी पेशे से घडी साज़ थे और मैं भी पेशे से घडी साज़. एक बार जब  मैं ने उन्हें अपना ये शेर सुनाया
''औरों की घड़ियाँ हमने संवारी हैं रात दिन -
और अपनी इक घडी की हिफाज़त न कर सके"
तो उनकी आँख नम हो गई और उन्होंने मेरे सर पर हाथ रख कर मुबारकबाद दी और कहा मुझे ख़ुशी के साथ अफ़सोस है  आदिल रशीद कि यह शेर मुझे कहना चाहिए था.
मरहूम साहिल सहरी सच्चे शायर सच्चे इंसान थे उन्होंने कभी मुशायरे पढने के लिए जोड़-तोड़ की राजनीती नहीं की, कभी दाद हासिल करने के लिए अपने ही बन्दों द्वारा फरमाइश की पर्ची भेजने का भोंडा ढोंग भी नहीं किया. वे अपने आपको संतुष्ट करने के लिए शेर कहते थे. अच्छे शेर कहने और सुनने का उन्हें जूनून था. अक्सर रात के पिछले पहर उनका फोन आ जाता और हमेशा की तरह  वही एक जुमला होता "भाई, कोई अच्छा शेर सुना दो". जब  मैं अपना या अपने हाफ़िज़े में से किसी और का कोई अच्छा शेर उन्हें सुना देता तो एक लम्बी ठंडी सांस लेते हुए कहते अब नींद आ जायेगी. वे  अक्सर शेर कहने के लिए पूरी-पूरी रात जागते  इसीलिए उन्होंने कहा
''ये हमसे पूछो के किस तरह शेर होते हैं
के हम सहर की अजानो के बाद सोते हैं''
साहिल सहरी के उस्ताद कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" थे, इसीलिए वे सहरी लिखते थे. साहिल सहरी कुंवर महिंदर सिंह बेदी "सहर" जिन्हें सब "आली जा " कहते थे के बेहद अज़ीज़ शागिर्द थे, जिसका ज़िक्र आली जा ने 'यादों का जश्न' में बड़ी ही मुहब्बत से किया है, जो लोग आली जा की ज़िदगी में आली जा से एक मुलाक़ात करने या आली जा का शागिर्द होने के लिए साहिल सहरी के आगे-पीछे घूमते थे आली जा की आँखे बंद होते ही उन्हीं लोगों ने उनके पीछे से गाल बजाने शुरू कर दिए लेकिन उनके मरते दम तक उनके सामने नज़रें उठाने की हिम्मत न कर सके.
उन्हें हमेशा इस बात का गिला रहा कि लोगों ने उनसे लिया तो बहुत कुछ मगर उन्हें उसका सिला जो उनका  हक था वो तक  कभी नहीं दिया. कच्ची मिटटी के ऐसे कई दिये हैं जिन्हें साहिल सहरी ने आफ़ताब किया था, लेकिन मौक़ा पड़ने पर उन्होंने अपने मुहसिन का हाथ जलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
साहिल सहरी साहिब से मशवरा करनेवालों की गिनती यूँ तो बहुत ही जियादा है लेकिन चन्द शागिर्द जिनका नाम साहिल सहरी साहिब बड़े ही फख्र से लेते थे उनमें ख्याल खन्ना कानपुरी, मशहूर नाजिम ऐ मुशायरा एजाज़ अंसारी दिल्ली, इकबाल आजर देहरादून, वसी अहमद वसी फरुखाबाद, अबसार सिद्दीकी खटीमा, शकील सहर एटवी के नाम काबिले ज़िक्र हैं.
उनका एक ग़ज़ल संग्रह "सफ़र सफर है" 2005 में प्रकाशित होकर मशहूर हो चुका था और उनकी ज़िन्दगी में ही उनके अज़ीज़ शागिर्द इकबाल आजर साहेब के हाथों उनकी दूसरी किताब पर काम शुरू हो चुका था जिसे अब जनाब इकबाल आजर "कुल्लियाते साहिल सहरी " के नाम से मुरत्तब कर रहे हैं जो जल्द प्रकाशित होगा.
साहिल सहरी को अनेको सम्मान मिले. दूरदर्शन, आकाशवाणी, ऍफ़ एम् चैनलों पर उनका कलाम प्रसारित हुआ तथा भारत और भारत से बाहर पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ.       
एक समय पर मुशायरों पर राज करने वाला बड़ा शायर, मुशायरे के माईक से शेर की तरह दहाड़ने वाला शायर {जिसकी नकल करके बहुत से शायर मुशायरों में बहुत कामयाब हुए} अपनी बढ़ती उम्र के साथ रफ्ता-रफ्ता मुशायरों से दूर होता गया और आखिरकार आज दुनिया से भी दूर हो गया लेकिन अगर वो चाहे भी तो साहित्य और साहित्य प्रेमियों के दिल से दूर नहीं हो सकता उनके कहे अशआर अदब पारों में हमेशा महफूज़ रहेंगे.
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aadil.rasheed1967@gmail.com

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