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मंगलवार, 21 अगस्त 2012

गीत : आज मंदिर को... राकेश खंडेलवाल / एस. एन. शर्मा 'कमल'

रचना - प्रति रचना 

गीत :

आज मंदिर को...


राकेश खंडेलवाल 

आज मंदिर को गये हैं छोड़ कर उसके पुजारी
दूसरी इक मूर्ति से निष्ठायें अपनी जोड़ते हैं
किन्तु हमने एक ही आराध्य को माना हमेशा
आज भी उसके चरण में नारियल ला फ़ोड़ते हैं
एक प्रतिमा संगामरमर की लगा नव आलयों में
थालियाँ नूतन सजा कर गा रहे हैं आरती नव
किन्तु शायद ये विदित उनको नहीं हो पा रहा है
छोड़ कर अपने निलय को देव विस्थापित हुआ कब
प्राण तो पाषाण में रहते सदा ही ओ पुजारी
खोल कर अपने नयन तू झाँकता तो देख पाता
शिव जटाओं की  तरह उलझी हुई पगडंडियों में
एक भागीरथ सहज भागीरथी को ढूँढ़ पाता
बात तो नूतन नहीं, इतिहास भी बतला गया है
एक को साधे सधै सब, साधिये सब शून्य मिलता
पंथ हर इक मोड़ पर बदले हुये चलते पथिक को
है नहीं संभव मिले उसको कभी वांछित सफ़लता
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<rakesh518@yahoo.com>

प्रति रचना: 

sn Sharma का प्रोफ़ाइल फ़ोटो 

एस. एन. शर्मा 'कमल'

     देवता जब प्राण खो पाषाण बन जाएँ
  पुजारी क्या करे
  पंख ही जब काट दे सैय्याद नभचर के
  गगनचारी क्या करे
  खो जाए सुरसरि शिव-जटा पगडंडियों में जब
  त्रस्त भागीरथ क्या करे
  पंथ पर दीवार उठ जाए अगर अन्याय की
  सहमा पथिक भी क्या करे
  इतिहास के पन्ने रंगे हो वरिष्ठों के रुधिर से
  न्याय की हो विफलता
  दुष्ट को प्रश्रय मिले जिस ठौर पर ही सर्वदा 
  संभव कहाँ फिर सफलता
  भागीरथ की तपस्या जब व्याध के विष-बाण से 
  विद्ध हो अभिशप्त बन जाये
  सम्बन्धियों की आत्माएं भटकती रह जाएंगी
  वहाँ पर बिन मुक्ति पाए  
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