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रविवार, 26 अगस्त 2012

गीत : आर.सी.शर्मा ’आरसी’

गीत :

 आर.सी.शर्माआरसी
 
 अधजली लाशें सिसकतीं बस्तियाँ देतीं धुआं,
 मिट गए सिन्दूर लाखों चीखतीं है राखियाँ,
 माँ के शव पर करते क्रन्दन दुधमुँहे शिशु बेजुबाँ,
 किस जगह जाकर रुकेगा दोस्तो यह कारवाँ ?
 *
 धर्म तो विश्वास है एक आस्था का नाम है,
 एक दूजे को लड़ाए किस धरम का काम है ?
 रक्त की नदियाँ बहें कश्मीर से गुजरात तक,
 क्या यही हिन्दुत्व है और क्या यही इस्लाम है ?
 
 प्रश्न कल तुमसे करेंगे देश के जब नौजवां,
 किस जगह जाकर रुकेगा दोस्तो यह कारवाँ ?
 *
 वो जो सत्ता-सुन्दरी की बांह में मदहोश हैं,
 अब भला उनको कहाँ जन-भावना का होश है ?
 काश ! आखें खोलकर वो देखते यह दुर्दशा,
 या तो हम मज़बूर थे या यह व्यवस्था-दोष है
 
 अँधे-बहरे बन गए हों देश के जब रहनुमाँ,
 किस जगह जाकर रुकेगा दोस्तो यह कारवाँ ?
 *
 राम जाने कब धडा़ यह सब्र का भर पाएगा,
 अय खुदा तू ही बता वह दिन भला कब आएगा ?
 अब तो दस्तक दे गईं संसद पे आके गोलियाँ,
 सिंह पर एक श्वान पागल कब तलक गुर्राएगा ?
 
 जुगनुओं के डर से सूरज जब फिरे छिपता हुआ,
 किस जगह जाकर रुकेगा दोस्तो यह कारवाँ
 *
 हम शिवा के पुत्र, गुरु गोविन्द की औलाद हैं,
 हम भगत सिंह, राजगुरु, हम बिस्मिलो-आजा़द हैं,
 कर्मभूमी कृष्ण की इस परम पावन देश में,
 स्वयं मर्यादा प्रतिष्ठित राम के परिवेश में,
 
 द्रोपदी लुटती रहे और भीष्म खोलें जुबाँ,
 किस जगह जाकर रुकेगा दोस्तो यह कारवाँ ?
 *

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