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गुरुवार, 23 अगस्त 2012

अनुप्रासिक दोहे: क स म क श -श्यामल सुमन

अनुप्रासिक दोहे:

क स म क श

श्यामल सुमन   
*
कंचन काया कामिनी, कलाकंद कुछ काल।
कारण कामुकता कलह, कामधेनु कंकाल।।

सम्भव सपने से सुलभ, सुन्दर-सा सब साल।
समुचित सहयोगी सुमन, सुलझे सदा सवाल।।

मन्द मन्द मुस्कान में, मस्त मदन मनुहार।
मारक मुद्रा मोहिनी, मुदित मीत मन मार।।

किससे कब कैसे कहें, करना क्या कब काम।
कवच कली का कलयुगी, कोई कहे कलाम।।

शय्या शोभित शचीपति, शतदल शरबत शाम।
शतरंजी शकुनी शमन, श्यामल शीतल श्याम।।
 
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मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।

www.manoramsuman.blogspot.com09955373288

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