कुल पेज दृश्य

बुधवार, 26 सितंबर 2012

दोहे: शशि पाधा

दोहे:
शशि पाधा 
*

कब बोलें कब चुप रहें, कैसे कह दें बात?

उहापोह के बीच में, व्यर्थ गँवाई रात..

रिश्ते तो पनपे नहीं, सींचा बारम्बार.

बीजों के इस हाट में, खोटा हर व्यापार..

चाहे जिनसे मेल मन, वे ही हैं अनमेल.

कैसे खेलें रोज हम, रिश्तों का शुभ खेल?

माँगे से मिलता नहीं, जग में सबको मान.

खरी बात तो यह रही, मिला नहीं अपमान..

गुठली मीठी आम का, उपजा पेड़ बबूल.

बदल गई थी पोटली , कितनी भारी भूल..

घुटी-घुटी सी सांस है, सहमी सी है आँख.

बीहड़ बीजी क्यारियां, खिलती कैसे पाँख?

परबस कोई क्यों रहे?, हो न महल का राज.

टूटा छप्पर घर हुआ, सर पर श्रम का ताज..

पाँव तले धरती नहीं, छोड़ा जब से देस.

माटी सोंधी है नहीं, रुचा नहीं परदेस..

सुख बाँटे चुप दुःख सहे, जीवन की यह रीत.

दुर्गम पथ भी सहज हो, हाथ गहे मनमीत..
____________
शशिपाधा@जीमेल।कॉम 

6 टिप्‍पणियां:

- prans69@gmail.com ने कहा…

- prans69@gmail.com

शशि जी,
बहुत दिनों के बाद आपके दोहे पढ़ कर अच्छा लगा है .
आप में ऊर्जा है .यूँ ही लिखते रहिएगा .
प्राण शर्मा

- shishirsarabhai@yahoo.com ने कहा…

- shishirsarabhai@yahoo.com


पहली बार शशि जी के दोहे समूह पर पढने को मिले.

रिश्ते तो पनपे नहीं, सींचा बारम्बार.
बीजों के इस हाट में, खोटा हर व्यापार..

वाह ...बहुत सुन्दर !

सादर,
शिशिर

deepti gupta ✆ yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta ✆ yahoogroups.com

kavyadhara


आदरणीय शशि दीदी,

सदस्य बनने के बाद, आज पहली बार आपकी रचना समूह पर दिखी है- वो भी संजीव की कृपा से!
आपके सभी दोहे बहुत सारगर्भित हैं !
सुख बाँटे चुप दुःख सहे, जीवन की यह रीत.
दुर्गम पथ भी सहज हो, हाथ गहे मनमीत..

माँगे से मिलता नहीं, जग में सबको मान.
खरी बात तो यह रही, मिला नहीं अपमान..

ये दोहे खास ही पसंद आए! ऐसे ही आती रहे!

ढेर सराहना के साथ,
सस्नेह,
दीप्ति

kamlesh kumar diwan ने कहा…

kamlesh kumar diwan

sach kaha hai

shashi padha@gmail.com ने कहा…

Shashi padha

नमस्कार संजीव जी,

दोहे दिव्य नर्मदा पर प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद|

Divya Narmada ने कहा…

शशि-किरणों से सृष्टि को, मिलता नवल निखार.
मोहित करती ज्योत्सना, सबको सजा-सँवार..