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मंगलवार, 11 सितंबर 2012

कविता: आस्था बीनू भटनागर

कविता:
आस्था

बीनू भटनागर



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मेरी आस्था मेरी पूजा का नाता मन मस्तिष्क से है,
और है आत्मा से।

मेरी पूजा मे ना पूजा की थाली है,
ना अगरबत्ती का सुगन्धित धुँआ है,
प्रज्वलित दीप भी नहीं है इसमे,
फल फूल प्रसाद से भी है ख़ाली,
क्योंकि,
मेरी आस्था मे  प्रार्थना व  ,शुकराना  है,
और है समर्पण भी।

मेरी आस्था मे न है सतसंग कीर्तन,
ना ही कोई समुदाय है ना संगठन,
मेरी आस्था तो केवल आस्था है,
ये तो है मुक्त है और है बंधन रहित
क्योंकि
मेरी आस्था मे ना कोई दिखावा है।
और है न प्रपंच कोई
मेरे ईश को अर्पण कर सकूं ऐसा,
मेरे पास नहीं है कुछ वैसा
वो दाता है जो भी देदे वो,
हर पल उसका शुकराना है,
क्योंकि,,
मेरी आस्था का नाता है विश्वास और विवेक से
जुड़े निर्णय मे ओर अनुभव मे




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