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बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

माहियों की छटा प्राण शर्मा

माहियों की छटा
प्राण शर्मा








*
तेरी ये पहुनाई 
कानों में घोले 
रस जैसे शहनाई 

मोहा पहुनाई से 
साजन ने लूटा 
मन किस चतुराई से 

माना तू अपना है 
तुझसे तो प्यारा 
तेरा हर सपना है 

फूलों जैसी रंगत 
क्यों न लगे प्यारी 
मुझको तेरी संगत 

हर बार नहीं करते 
अपनों का न्योता 
इनकार नहीं करते 

रस्ते  अनजाने  हैं 
खोने  का डर है 
साथी  बेगाने   हैं 

आँखों में ख्वाब तो हो 
फूलों के जैसा 
चेहरे पे  आब तो हो 

इक जैसी रात नहीं 
इक सा नहीं बादल 
इक सी बरसात नहीं 

तकदीर बना न सका 
तूली के बिन मैं 
तस्वीर बना न सका 

हम घर को जाएँ क्या 
बीच में बोलते हो 
हम हाल सुनाएँ क्या 

मैं - मैं ना कर माहिया 
ऐंठ नहीं चंगी 
रब से कुछ डर माहिया 

नादान  नहीं  बनते 
सब कुछ जानके भी 
अनजान नहीं बनते 

झगड़ा न हुआ होता 
सुन्दर सा अपना 
घरबार  बना  होता 

पल का मुस्काना न हो 
ए  मेरे  साथी 
झूठा  याराना  न  हो 

कुछ अपनी सुना माहिया 
मेरी भी कुछ सुन 
यूँ   प्यार  जगा  माहिया 

आँखों  में  नीर न  हो 
प्रीत ही क्या जिस में 
मीरा  की  पीर  न हो 

आओ  इक  हो  जाएँ 
प्रीत  की  दुनिया  में 
दोनों   ही   खो   जाएँ 

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6 टिप्‍पणियां:

Divya Narmada ने कहा…

माहिए का छंद विधान है क्या? यह लय पर आधारित है या अक्षरों पर? माहिये पढ़कर आनंद आया, माहिए और हाइकु में क्या अंतर है?

PRAN SHARMA ने कहा…

PRAN SHARMA

प्रिय सलिल जी ,
माहिया मात्रिक छंद है . पहली और तीसरी पंक्ति में 12 और दूसरी अरमा पंक्ति में 10 मात्राएँ होनी चाहिए .
इसमें स्वर को गिराया भी जाता है .
प्राण शर्मा

PRAN SHARMA ने कहा…

PRAN SHARMA

प्रिय सलिल जी ,
हाइकु के बारे में मेरा ज्ञान शून्य है. लगता है कि इसमें तीन पंक्तियाँ ही होती हैं.ये किसी छंद विधान से नहीं है.
प्राण शर्मा

Divya Narmada ने कहा…

प्राण जी !
नमन.
आपके माहिए अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किये हैं। धन्यवाद।
मेरी जानकारी के अनुसार संस्कृत में अनेक त्रिपदिक छन्द हैं। हाइकू जापानी छंद वर्णिक छंद है जिसके 3 पद 5 - 7 - 5 अक्षरों के होते हैं। तुक का कोई बंधन नहीं होता। मूलतः हाइकू प्राकृतिक दृश्यों पर कहे जाते हैं किन्तु हिंदी में हाइकू में महाकाव्य भी रचा गया है, गीता जैसे ग्रन्थ का हाइकू-अनुवाद हुआ है। हर विषय पर हाइकू

Divya Narmada ने कहा…

प्राण जी !
नमन.
आपके माहिए अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किये हैं। धन्यवाद।
मेरी जानकारी के अनुसार संस्कृत में अनेक त्रिपदिक छन्द हैं। हाइकू जापानी छंद वर्णिक छंद है जिसके 3 पद 5 - 7 - 5 अक्षरों के होते हैं। तुक का कोई बंधन नहीं होता। मूलतः हाइकू प्राकृतिक दृश्यों पर कहे जाते हैं किन्तु हिंदी में हाइकू में महाकाव्य भी रचा गया है, गीता जैसे ग्रन्थ का हाइकू-अनुवाद हुआ है। हर विषय पर हाइकू कहे जा रहे हैं।
माहिया भी एक त्रिपदिक छन्द है। अपने इसे 12 -10 -12 मात्राओं का छंद बताया है। प्रथम - तृतीय पद सम तुकांत रखने से लालित्य-वृद्धि हुई है। क्या यह अनिवार्य है या तीनों पद, प्रथम-द्वितीय, द्वितीय-तृतीय भी सम तुकांत रखे जा सकते हैं अथवा तीनों पद अतुकांत भी होते हैं?
माहिया के रचना विधान पर एक लेख दे सकें तो बहुतों का उपकार होगा। कुछ पत्रिकाएं अन्य पद-भार की त्रिपदियों को माहिया का नाम देकर छाप रही हैं।

PRAN SHARMA ने कहा…

प्रिय सलिल जी,
सबसे पहले मेरा हार्दिक धन्यवाद स्वीकार कीजिये, आपने मेरे माहिये अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किये हैं.माहिया छंद 12-10-12 मात्राओं का ही त्रिपदिक छंद है. इसमें प्रथम-तृतीय पद ही सम तुकांत में रखने की विधि है.
साहिर लुधिआनवी और आनंद बक्शी ने क्रमश: फिल्म नया दौर और महाचोर में बड़ी सुन्दरता से इस छंद का प्रयोग किया है.
आनंद बक्शी का यह माहिया पढ़ियेगा -

सुन बंतो बात मिरी
दिन तां गुज़र जाएगा
नई कटनी रात मिरी

`जाएगा` को गिराकर `जाए` के वज़न में इस्तेमाल किया गया है.
पंजाबी के इस लोकगीत छंद और दोहा छंद को उर्दूवाले बहुत अपना रहे हैं. अब तो वे त्रिपदी में गज़लें भी कहने लगे हैं. फ़िल्मी गीतकार गुलज़ार ने त्रिपदी में कई गज़लें कही हैं. निदा फाजली ने बहुत से दोहे लिखे हैं.
मेरे कई माहिये राजेंद्र अवस्थी ने कादम्बिनी में छापे थे. यह शायद 1990 की बात है. मैंने कई माहिये`माँ`पर भी लिखे थे जो साहित्य शिल्पी में छपे थे .

आशा है कि आप सानंद हैं .
ढेर सारी शुभ कामनाओं के साथ-
प्राण शर्मा