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गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

दो बालगीत: बिटिया / लंगडी आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

दो बालगीत: 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

1- बिटिया

*

स्वर्गलोक से आयी बिटिया।
सबके दिल पर छाई बिटिया।।

यह परियों की शहजादी है।
खुशियाँ अनगिन लाई बिटिया।।

है नन्हीं, हौसले बड़े हैं।
कलियों सी मुस्काई बिटिया।।

जो मन भाये वही करेगी.
रोको, हुई रुलाई बिटिया।।

मम्मी दौड़ी, पकड़- चुपाऊँ.
हाथ न लेकिन आई बिटिया।।

ठेंगा दिखा दूर से हँस दी .
भरमा मन भरमाई बिटिया।।

दादा-दादी, नाना-नानी,
मामा के मन भाई बिटिया।।

मम्मी मैके जा क्यों रोती?
सोचे, समझ न पाई बिटिया।।

सात समंदर दूरी कितनी?
अंतरिक्ष हो आई बिटिया।।

*****
*
बाल गीत:
2- लंगडी

आचार्य संजीव 'सलिल'
*
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in.divyanarmada
94251 83244 / 0761 2411131

5 टिप्‍पणियां:

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आ 0 आचार्य जी ,
बिटिया पर भाव भरा गीत पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया ,
कुछ उदगार फूट पड़े जिनकी तुकबंदी कर दी -
बिटिया
लक्ष्मी का अवतार बनी है
देवलोक से आई बिटिया
किलकारी से आँगन गूँजे
गृह-लक्ष्मी की जायी बिटिया

काम मत करो खेलो मुझसे
मचल मचल रिरियाती बिटिया
पापा दफ्तर से आते जब
झट गोदी चढ़ जाती बिटिया

बड़े भाग्यशाली वे दंपति
जिनके घर जन्मी बिटिया
बेटों से कई गुना अधिक
ममता की खान बनी बिटिया

दादा दादी नाना नानी की
गुडिया सी है प्यारी बिटिया
जब जब गोदी में आ जाती
लगाती जग से न्यारी बिटिया

कमल

Kanu Vankoti ने कहा…

Kanu Vankoti

kavyadhara


आदरणीय दादा और संजीव भाई, आप दोनों की कविताएँ दिल को गहराई तक छू गई. बहुत ही सुन्दर है.
सादर,
कनु

Divya Narmada ने कहा…

आप दोनों की गुणग्राहकता को नमन।

deepti gupta ✆ yahoogroups.com ने कहा…

आदरणीय संजीव जी.
'बिटिया' शब्द की तरह सलोनी , मनहर और सुकुमार सी कविता के लिए ढेर सराहना स्वीकारें ..!

सादर,
दीप्ति

- madhuvmsd@gmail.com ने कहा…

- madhuvmsd@gmail.com

आ. संजीव जी
बाल गीत सरल व सुन्दर है चपलता का बहुत सुन्दर चित्रण किया है जैसा सूरदास जी का है ;
पिछले वर्ष जब मेरी बिटियाँ/ बच्चो संग आई और चली गई तब मैंने कुछ लिखा था भेट करती हूँ ;

आज सुबह उठते ही पैर मुड़े उन कमरों की ओर ,
दृष्टि घूम गई उन बिस्तरों के चारों ओर
जहाँ सोई होती थी नन्ही परियों की शहजादी
स्वप्नों में भरी होती थी उनींदी पलकों की पनियाली
उलझी रेशमी लटें , चेहरे पर पड़ी हुई तितर -बितर
होठों के समीप पड़ी फुरकती, उसकी वो हलकी सी हँसी
वो दस बरस की , मैं पैसठ साला ,
पर हम लगा कर बैठ जाते थे पाठशाला ,
वो मेरी टीचर बन जाती , मैं नौटकी बाज शिष्या ,
कभी हम दोनों हमउम्र, हमजोली बन जाते ,
और खेलते घर - घर ,
नाम बदल कर खेल खेलते दिन भर ,
आज उसी बिस्तर की सिलवट , हिली नही है बिल्कुल ,
कलर करने के कागज़ , स्टैचू बन सधे धरे हैं
घर इतना तरकीब पूर्वक ,
पहरेदार के चाबुक सा
सिपाही की यूनिफार्म लगे कलफ सा
कड़क व सपाट पड़ा है
और वो उसकी गुडिया का गुड्डा , अलमारी में रूठा पड़ा है
उसे किसी ने न खाना खिलाया ,
न बाहों में झुलाया ,
आज सुबह होने से पहले शाम हों गई
रात कब आएगी , वख्त की रफ़्तार बहुत अधिक मंथर हों गई
मधु