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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

सामयिक रचना: सेन्डी की बदगुमानी मैत्रेयी अनुरूपा


सामयिक रचना: 
अमरीका में आए तूफ़ान सैंडी पर: 
सेन्डी की बदगुमानी

मैत्रेयी अनुरूपा
 
तूफ़ान की हदों से गुजरी है ज़िन्दगानी
लेकिन न हार फिर भी लम्हे के लिये मानी
 
दो फ़ुट बरफ़ की चादर ओढ़े हुये कहा है
ए अब्र जरा बरसा कुछ और अभी पानी
 
रफ़्तार मील सत्तर चलती रहें हवायें
हमने भी नशेमन की कुव्वत है आजमानी
 
लेकर उठा है करवट फ़िर खंडहर से कोई
दरिया की आदतें ये अब हो चुकी पुरानी
 
अनुरूपा गिन न पाये जो पेड़ गिर गये हैं
गिनती है सिर्फ़ पौधें जो फिर नई लगानी
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1 टिप्पणी:

संगीता पुरी ने कहा…

प्रकृति का तांडव झेलकर भी संभलते आए हैं ..