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मंगलवार, 20 नवंबर 2012

पैरोडी: संजीव 'सलिल'

ई मित्रता पर पैरोडी:
संजीव 'सलिल'
*
(बतर्ज़: अजीब दास्तां है ये,
कहाँ शुरू कहाँ ख़तम...)
*
हवाई दोस्ती है ये,
निभाई जाए किस तरह?
मिलें तो किस तरह मिलें-
मिली नहीं हो जब वज़ह?
हवाई दोस्ती है ये...
*
सवाल इससे कीजिए?
जवाब उससे लीजिए.
नहीं है जिनसे वास्ता-
उन्हीं पे आप रीझिए.
हवाई दोस्ती है ये...
*
जमीं से आसमां मिले,
कली बिना ही गुल खिले.
न जिसका अंत है कहीं-
शुरू हुए हैं सिलसिले.
हवाई दोस्ती है ये...
*
दुआ-सलाम कीजिए,
अनाम नाम लीजिए.
न पाइए न खोइए-
'सलिल' न न ख्वाब देखिए.
हवाई दोस्ती है ये...
*
Sanjiv Verma 'salil'
divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com

3 टिप्‍पणियां:

Mahipal Singh Tomar ने कहा…

Mahipal Singh Tomar


Practical Wisdom

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma द्वारा yahoogroups.com

आ0 आचार्य जी '
सुन्दर पैरोडी , साधुवाद ।
ई-मित्रता है नित्य नए रिश्ते जुड़ रहे
अपनों से अधिक पराए अपने बन रहे
जरा बच के ज़रा हट के चलना ही भला
रिझाने के प्रयास धुआंधार उड़ रहे !

सादर
कमल

- madhuvmsd@gmail.com ने कहा…

- madhuvmsd@gmail.com
संजीव जी
वाह! क्या पैरोडी है ये
कम्पूटर पर मिली अनोखी दोस्ती है ये
शरीर अब चलता नही
कैसे?- किसी को मिलें ?
सफर तय किए बिना
पहुँच गए बिन थके ,
मधु