कुल पेज दृश्य

रविवार, 25 नवंबर 2012

चित्र पर कविता: रसपान

चित्र पर कविता:
रसपान

इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ अब तक प्रकाशित चित्रों में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य के विविध आयामों को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं हैं. संभवतः हममें से कोई भी किसी चित्र के उतने पहलुओं पर नहीं लिख पाता जितने पहलुओं पर हमने रचनाएँ पढ़ीं. 

चित्र और कविता की कड़ी १. संवाद, २. स्वल्पाहार,
३. दिल-दौलत, ४. प्रकृति, ५ ममता,  ६.  पद-चिन्ह, ७. जागरण, ८. परिश्रम, ९. स्मरण, १०. उमंग तथा ११ सद्भाव  के पश्चात् प्रस्तुत है चित्र रसपान. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.

apple blossoms and butterfly macro 

कली-पुष्प रसमय हुए, पवन तरंगित देख।
तितली ने रस पान कर, पढ़ा प्रणय का लेख।।

हुलस-पुलक तितली हुई, पुष्पों पर बलिहार।
पुष्प-पंखुड़ियों ने किया, स्वागत हुईं निसार।।

रंग प्रणय का चढ़ गया, फूल उठे हैं फूल।
फूल न तितली छरहरी, गयी वृंत पर झूल।।  

तितली का स्वागत करे, फूल कहे आदाब।
गुनगुनकर तितली कहे, सत्य हो गया ख्वाब।।

 कौन हुआ है किस पर यहाँ, मुग्ध बताये कौन?
गान-पान रस का करें, प्रणयी होकर मौन।।

**********
इंदिरा प्रताप 

रसपान
*
पी के हो मस्त
रूप - रस - गंध
सब एक संग
उड़ गई लो उड़ गई
तितीलिका -
ले के सब संग |
 
रह गया बेचारा
देख फूल दंग
कैसा तेरा ढंग
खिल रहा हू डाल पर
फिर भी हो मगन
सहयोगियों के संग |
 
डाल डाल झूल रहा
मन ही मन फूल रहा
सिहर रहे गात हैं
संग तेरा साथ है
कब तक ,कब तक
हे प्रभु, कैसा ये प्रसंग है |
 
***

कोई टिप्पणी नहीं: