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गुरुवार, 15 नवंबर 2012

shriddhanjali shrimati lakshami gupta mother of Dr. Deepti Gupta

माँ के श्री चरणों में संतानों की प्रणतांजलि 


-- ।।   मातृदेवताय नमः   ।।  --

माँ
स्व. लक्ष्मी गुप्ता
(जन्म :16 दिसंबर 1927, निधन : 28 अक्टूबर 2012)

*

''माँ अमर है...
देह ही हमसे बिछुड़ती, श्वास के संग नित समर है।
संतति के चेहरे पर, दीप्ति है तो माँ अमर है।।''
*



विनयावनत
माँ की संतानें


''माँ को अर्पित शब्द सुमन हैं...
*
भावगंध अक्षर-अक्षर में,
शाश्वत भी जन्मित है क्षर में।
ढाई आखर लिखे न पढ़ती-
जीती है माँ साँझ-सहर में।।
माँ की ममता से ही पुष्पित
मरु में होते रहे चमन हैं...
*
जगती शिशु की मुस्कानों में,
हँसती बचपन के गानों में।
बढ़ती लख सपने किशोर नित-
खिलती यौवन की तानों में।।
मृदुता माटी, संयम पानी-
श्वास-आस दे रचे भुवन हैं...
*
भाव बिम्ब रस छंद कथ्य लय,
विलयित माँ में, करते अनुनय।
ताल-थाप, कविता-सविता बन-
प्रगटित होते, करते अभिनय।।
भगवानों को इंसानों में-
ढाले, पगतल झुके गगन हैं...''

: सिने जगत :
खय्याम साहब, संगीतकार:

           ''अरे, यह कैसे हुआ? आप दुखी मत होना बेटा ! धीरे-धीरे सब पहले जैसा हो जाएगा। हिम्मत से काम लो  और धैर्य रखो। आप बहुत गुणी और समझदार हो।''
निम्मी, अभिनेत्री: 

           ''ओफ् आज का दिन वैसे ही गमगीन था ऊपर से यह बुरी खबर।.. वे तो बीमार भी नहीं थी, पर अल्लाह की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती है। प्यारी दीप्ति ! अभी तुम्हारी यह आंटी ज़िंदा बैठी है। तुम गम न करो बच्ची! कुछ दिन के लिए मेरे पास आ जाओ। २००४ से तुम्हें मुम्बई बुला रही हूँ। चलो अब आ जाओ। एक भी आँसू मत बहाना, वरना माँ की रूह बेचैन रहेगी। तुम जैसी बेटी सबको कहाँ नसीब होती है। मेरा ढेर प्यार और दुआएं तुम्हारे लिए बेटा !''
प्रकाश झा, निर्माता-निदेशक :

           ''Very sorry to learn about  the sad demise of your mother, Deepti! Really I was deeply saddened to hear of your loss. My deep condolences to you and your family. May God bless you.''

पी. के. नायर, Founder-Director of National Film Archive of India Pune:

           ''Deepti! I am really sorry to know about the sudden demise of your mother. She had old age weakness but no ailment as you told me often. May her soul rest in peace. Have courage, brave and devoted girl!  My warm blessings are with you always.''
 
शकीला, अभिनेत्री:

           ''दीप्ति  ! बिल्कुल भी परेशां न होना। माँ का दूर होना कष्ट तो देता है  लेकिन एक दिन सबको जाना ही होता है, इस तरह मन को समझाओ। अपना ख्याल रखो, तुमने कितनी सेवा की माँ की, अल्लाह तुम्हें ढेर दुआएं देगा। मेरा कहा मानो और मुम्बई मेरे पास चली आओ।''

शांतनु मुखर्जी ‘शान’,  गायक 

           ''Oh  no…..! Loss of  mother is unbearable….! My heartfelt condolences… I pray to the Almighty to give u courage, strength and support. Take  care….''

श्याम बेनेगल, निर्माता-निदेशक: 

           ''It is really a sad news. Mother is the most precious thing in the world and the daughter like you also so precious. Please, don’t be depressed be brave and I pray the love of God enfolds you during your difficult times and he helps you heal with the passage of time….!  May her soul rest in peace! Warm Blessings.''
 
सुधा महरोत्रा, गायिका:

           ''बेटा  ! बहुत अफसोस हुआ तुम्हारी माँ के बारे में जानकर। मैं जब पूना आऊंगी तो, तुम्हारे पास ज़रूर आऊंगी। अपना ध्यान रखों और इस दुःख से उबरो।''
: साहित्य जगत :
अमरकांत वरिष्ठतम लेखक, अरविंद पुत्र, सरिता पुत्रवधू:

           ''माँ का विछोह कितना पीड़ादायक होता है  इसे कौन नहीं जानता? फिर भी ऐसे दारुण दुःख ईश्वर का नाम लेकर सहने पड़ते हैं। दुःख-सुख जीवन का हिस्सा है अतैव धैर्य से इस कष्ट को सहते हुए अपनी लेखनी को सक्रिय रखो और हमेशा की तरह हिम्मती बनी रहो। ढेर आशीष।''
अमिताभ त्रिपाठी,  साहित्यकार: 

           ''आपकी माँ के दिवंगत होने का दुखद समाचार मुकेश जी से प्राप्त हुआ। ईश्वर आपकी माता जी की आत्मा को शांति प्रदान करे एवं आपको यह दुख सहने की शक्ति दे।''
अरुण तिवारी, संपादक ‘प्रेरणा’: 

           ''ईश्वर आपको दुःख सहने  की शक्ति दे। मेरी समस्त संवेदनाएं आपके साथ हैं।''
आनंद पाठक, साहित्यकार:
           ''आप की माँ के निधन का समाचार सुन कर दुख हुआ। भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें और आप को दुख सहने की शक्ति दें।''

 
आलोक श्रीवास्तव, साहित्यकार:
अम्मा
                     
चिंतन दर्शन जीवन सर्जन, रूह नज़र पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर-शराबा, सूनापन तनहाई अम्मा

उसने खुद़ को खोकर मुझमें, एक नया आकार लिया है,
धरती अंबर आग हवा जल, जैसी ही सच्चाई अम्मा

सारे रिश्ते- जेठ दुपहरी, गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर, भीनी-सी पुरवाई अम्मा

घर में झीने रिश्ते मैंने, लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके-चुपके कर देती थी, जाने कब तुरपाई अम्मा

बाबू जी गुज़रे, आपस में- सब चीज़ें तक़सीम हुई तब-
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई अम्मा
*
(प्रस्तुति :  शिशिर)
इंदिरा प्रताप, साहित्यकार:
          ''इस खबर ने मुझे स्तब्ध कर दिया। भगवान उन्हें अपनी शरण में लेगें और आपको इस कठिन दुःख को सहन करने की शक्ति देंगें।! आपने पहले भी और अंतिम दिनों में भी जिस तरह से उनकी सेवा की, उनका आशीष आपके ऊपर सदैव रहेगा। ...आँसू ईश्वर की बहुत बड़ी देन हैं जो दुःख में हमारा बड़ा सहारा बनते हैं | ये वो सहारा होते हैं और उस समय हमारा साथ देते हैं जब कोई दूसरा हमारे साथ नहीं होता | इस दुःख में हम सब के आँसू दीप्ति के आंसुओं के साथ मिल कर बह रहे हैं, ये केवल आँसू ही नहीं 'बीबी' के लिए हमारी मूक श्रृद्धांजलि भी हैं |''

माँ
''माँ! तेरे अंतिम दर्शन न कर पाने का दुःख ,
मन में समाया है इसीलिए
श्रृद्धा के फूल लिए चरणों में नमन करने आया है।
चंचल वाणी मूक है ,
अश्रुपूरित नयन और
मन में उठ रही हूक है ,
पार्थिव शारीर का परमात्मा से मिलन
यही तो एक जीवन का सत्य है।
जिसे हम सब को मानना है।
जीवन एक धारा है,
बहती रही है, बहती रहेगी ,
इसी तरह वंशावली चलती रहेगी।
विद्यमान तुम
इस तरह,
सदा रहोगी पास,
हमारे रक्त में, हमारी ऊर्जा में ,
सदा हम सब बेटिओं के।''


कनु वनकोती, साहित्यकार:

           ''Dear Deepti ji, the news of your mother's sad demise was like a cruel shock to me.I am so sorry to hear about your mom. I can very well realise how lost you must beat the moment.....Loss of mother is unbearable.....! I can imagine how dutiful and   devoted you must be to your mom. But we have to surrender before God's will. So please, do not be depressed. May you get the strength to handle the situation in the best way possible.I pray for you and your family.


           I know emotional set back takes time to heal up, still I request you to be happy for the sake of your mom so that she can rest in peace. I don't know how to help you. Please if you need any help, do let me know. With lots of prayers & warm regards...''
कृष्णा सोबती, लेखिका:

           ''माँ की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता बेटा। तुम साहसी और प्यारी लडकी हो जिसने माँ की दिनचर्या में अपने को समो कर ज़िंदगी जी। तुम्हें शाबाश! देखना ज़िंदगी तुम्हें कितना सुख, सुकून और चकित कर देनेवाली खुशियाँ देगी। मेरी दिली दुआ तुम्हारे साथ है दीप्ति! खुश रहो।''
किरण निरवाल,  साहित्यकार:

           ''माँ आखिर माँ ही होती है। इस क्षति की पूर्ति कोई नहीं कर सकता। आ. दीप्ति जी, आप की रचनाओं में मैंने आप के अंदर धैर्य और साहस दोनों देखें हैं। उम्मीद है वो बना रहेगा। उस माँ को नमन जिसने डॉ. दीप्ति जैसी प्रतिभा- शाली पुत्री को जन्म दिया...भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें।''
गोपालदास सक्सेना 'नीरज', कवि:

           ''दीप्ति मैं तो कहूँगा कि तुम्हारी माँ बहुत शांति से गई, तुम्हें खुश होना चाहिए वरना बूढ़े शरीर की पीड़ा  को भोगनेवाला ही जानता है, जैसे मैं। खैर, यह मैनें एक माँ के पक्ष की बात कही। तुम्हारे पक्ष से बोलूँ तो तुम्हें उनका  विछोह कचोटेगा क्योंकि उनका  दिन-रात का साथ था। तुम बहुत अच्छी बेटी हो कि माँ की तन-मन-धन से खूब सेवा की। ईश्वर तुम पर  दैवी आशीष बरसाए और तुम जैसी  बेटी सबको दे।''

घनश्याम गुप्ता, साहित्यकार:          

           ''इस कठिन समय में दीप्ति जी और उनके परिजनों के प्रति मेरी ओर से हार्दिक संवेदना व सहानुभूति।''
नवीन सी. चतुर्वेदी,  साहित्यकार:
           परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को चिर-शांति तथा संकट की इस घड़ी में दीप्ति जी तथा उन के परिवारीजनों को इस कुठाराघात को सहने का सम्बल प्रदान करें।''

पीयूष पंत, वरिष्ठ पत्रकार:
           ''माता जी  के निधन का दुखद समाचार पाकर  सतब्ध हूँ। ईश्वर आपको  यह कष्ट सहने की शक्ति दे। इस  पीड़ादायक घड़ी में हम आपके साथ हैं।''

पूनम, कवयित्री: 

माँ
    *     
''माँ   सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां
अंतरिक्ष के इस पार से
उस पार तक का अंतहीन विस्तार है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं——————–।
शिशु की हर तकलीफ़ों को रोके
ऐसी इक दीवार है मां
शब्दकोश में नहीं मिलेगा
वो कोमल अहसास है मां।
 मां सिर्फ़ शब्द नहीं——————-।
स्रिजनकर्ता सबकी है मां
प्रक्रिति का अनोखा उपहार है मां
ममता दया की प्रतिमूर्ति
ब्रह्म भी और नाद भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं———————।
स्वर लहरी की झंकार है मां
लहरों में भी प्रवाह है मां
बंशी की धुन है तो
रणचण्डी का अवतार भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं———————।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां।''
*
(प्रस्तुति : कनु)
प्रकाश गोविन्द, साहित्यकार:

           ''ओह, हे भगवान! इस अपार वेदना के पलों में हम आपके साथ हैं। परमपिता इस आघात को सहन करने की शक्ति प्रदान करे। अश्रुपूरित श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ।''
प्रताप सिंह, साहित्यकार:
           ''ईश्वर दिवन्गत आत्मा को शान्ति दें और आ. दीप्ति जी को यह दुख सहने की शक्ति।''
माँ -
*
''माँ ! जब भी तुम्हारे प्रति
कुछ लिखने को सोचता हूँ
मेरे शब्द बौने हो जाते हैं
तुम जीवन का महानतम महाकाव्य हो
और मेरी कविता बहुत ही तुच्छ।

माँ !...जब भी जी में आता है
कि तुम्हारी आरती उतारूँ,
मुझे आरती की ज्योति बहुत ही क्षीण दिखने लगती है
तुम मेरे जीवन का सूर्य हो
और मेरे दीपों की लौ बहुत ही मद्धम।

माँ !...जब भी चाहता हूँ
कि तुम्हें  कुछ दे दूँ ,
हर पदार्थ मिथ्या दिखने लगता है
तुम मेरी प्राप्ति का स्रोत हो
और तुमसे अलग, मेरा हर अर्जन अकिंचन।

माँ !...मैं जानता हूँ
तुम मेरी विवशता समझ लोगी
(जैसे बचपन से मेरे हर अबोले को समझती रही हो)
और मेरी कामना भी
कि हर जन्म में
तुम्हारे वात्सल्य की गंगा
मेरे जीवन को सिंचित करती रहे।         
*
प्रणव भारती, साहित्यकार:

माँ
*
उस शाम जब
मेरे पपोटे सीलन से भर उठे
मुझे तेरी याद आ गई।
अचानक ही जैसे किसी टूटे खिलौने को याद कर
एक नन्हा बच्चा सुबकने लगता है--- शायद
उस समय कोई पीड़ा उसके भीतर जन्म लेती है।
पर--- मैं तो बड़ी हूँ---
सुबककर रोने से मेरी शान में बट्टा लग सकता है।
मुझे तो पहरे बैठाने होते हैं अपनी इन्द्रियों पर
भीतर की टूट-फूट को सहनशीलता के फैवीकोल से
चिपकाकर रखना होता है--- बार-बार
फिर भी 'अहं 'की दीवार बार-बार दरकती है
फांकें सी पड़ जाती हैं उसमें--- और--- मैं
स्वयं में व्यस्त-त्रस्त
तुझे याद करने की ज़हमत से बरी हो जाती हूँ ।
स्वयं को पूर्ण-संपूर्ण मान
'अहं' के गलियारों में बार-बार फेरी लगाता है मन
उस चूड़ीवाले की भांति
जिससे उस शाम सामनेवाले की औरतें
चूड़ियों के दाम पर--- और 'हाँ--- आशीष के नाम पर
तू-तू, मैं-मैं कर रही थीं---
तब मेरे पपोटे अचानक ही सीलन से भर उठे थे
तेरा 'शाश्वत-आशीष' मेरे समक्ष मानो  खण्डहर से निकल 
मुस्कुराता हुआ आ खड़ा हुआ था---
तेरे भीना आंचल मेरी आँखों की सीलन को
अपने भीतर सोखने की चेष्टा सी कर रहा था---
तब---- अचानक ही मुझे लगा था मैं तेरे बिना पूर्ण हो ही नहीं सकती
तेरा स्पंदन महसूसती मैं तुझमें ही घुल गई थी
व्यक्तिगत 'व्यक्तित्व' को स्वीकारता  मेरा झूठा 'अहं' धुल गया था
तड़प  उठा था मन---
उस क्षण मुझे तेरी कितनी याद आई थी 'माँ' ---!!
*
''...ये शब्द ही हैं जो सहारा दे जाते हैं,
ये शब्द ही हैं जो कटुता और मिठास बन जाते हैं।
शब्दों की माला इतनी सुंदर है कि
सामने स्वयं को दीखता दर्पण है।
एक बिटिया ने बेटा बनकर माँ का साथ निभाया है।
प्रमाण समक्ष है, फिर भी संसार भरमाया है।
अब तो बेटे और बेटी में फर्क न हो,
और कोई भी रिश्ता खुदगर्ज़ न हो ।
यह कटु सत्य है कि आने वाला अपने साथ
जाने का दिन तय करके आया है,
और यह शरीर क्या है ?
यह भी केवल साया है ।
माँ -बच्चों का रिश्ता होता है बड़ा ही पावन,
जब तक रहें, तब तक बना रहे संगम।
सब पंक्ति में ही खड़े हैं यहाँ,
कौन जाने कल कौन कहाँ?
अत:, विधाता का धन्यवाद कर,
मन को शांत रखना है,
यही माँ के लिए वन्दना, अर्चना है।

वो जहां भी होंगी देंगी सदा आशीष,
'दीप्त' रहे बिटिया, यही मन में होगा 'ईश'।।
तुम्हारे साथ
हम सब''

प्राण शर्मा, साहित्यकार:

प्रिय दीप्ति जी ,
            ''जानकर अति शोक हुआ है कि आपकी माताश्री स्वर्गवासी हो गयी हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और आपको और परिवार के सभी सदस्यों को यह दुःख सहन करने का धीरज पैदा करे।''
भूपाल सूद, प्रकाशक:
            ''hardik smavedna parivar ke liye.''
मधु गुप्ता, साहित्यकार:

           ''प्रिय दीप्ति  ! बहुत बहुत दुःख पहुँचा। ये ऐसा रिश्ता है कि बस कुछ कहा नही जाता। अश्रुपूर्ण विदा उन्हें और तुम्हें ईश्वर शक्ति प्रदान करे। काश कि हम पास होते और तुम्हें हग कर पाते। माताश्री के दर्शन कर पाते, किन्तु हम रूहानी तौर पर तुम्हारें पास खड़े हैं, बिल्कुल पास। इतनी पास कि तुम फुसफुसाओ तो भी हम सुन लेंगे। बस और कुछ अधिक नहीं।''

''खबर सुन कर,

व्यक्त नहीं कर सकती हूँ,

आँखों से आँसू क्यों निकले?

देखा नहीं उन्हें कभी,

जाना नहीं मैंने उनकों भी,

कम्पूटर पर रिश्ता बना,

मेरा उससे, उसका मुझसे,

पर रिश्ता जब हों माँ का बेटी से,

बेटी का माँ से

फिर हों वो दूर कहीं भी, लगता जैसे

टूट गया हों शीशा झट से,

सिसकी सुनकर, मन चाहा,

भर लूँ अंक में उसको,

और सहला दूँ पीठ प्यार से,

माँ ------- से जब बिछुड्ती है बेटी कोई,

तब वो कहीं भी हों भिगो देती है,

सूखे पल्ले का कोना,

यहाँ होना, वहाँ न होना,
हो जाता है सब बेमानी

देखा नहीं जाता हैं,
लेटी हुई निस्पंदन माँ का
वो जीवन विहीन, मुखड़ा सलोना.
मन्नू भंडारी, लेखिका:

           ''दीप्ति, तुम्हारी माँ के बारे में सुधा से पता चला। दुःख तो ज़रूर हुआ पर बेटा! मैं तो यह कहूँगी कि वे जीर्ण शरीर से मुक्त हो गईं। बेटा ! तुमने उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी, तुम्हें इस बात का संतोष होना चाहिए कि तुमने माँ की भरपूर सेवा की, वरना आज के युग में भले ही कितने भी अच्छे बेटा-बेटी हों, इस तरह एकनिष्ठ भाव  से  कहाँ  सेवा  करते  हैं  ? सो तुम धैर्य रखते हुए अपने को सम्हालो और उनकी अनुपस्थिति से उपजी पीड़ा से बाहर आओ। तुम्हें भावों, विचारों और भाषा का बड़ा ही अद्भुत वरदान  हैं, उस पर अपने को केंद्रित करो।

                                                                                            तुम्हें मेरा  बहुत सा प्यार और शुभाशीष।''
ममता कालिया, लेखिका:

           ''बहुत हृदयविदारक खबर है। तुम्हें बहुत लम्बे समय तक उनकी याद सताएगी। दीप्ति  ! देखना तुम जल्दी उनकी यादों से मुक्त नहीं हो पाओगी  क्योंकि  माँ चीज़ ही ऎसी होती है। फिर तुम तो उनके जीवन का अपरिहार्य हिस्सा  रही हो। तुमने अपना धर्म बहुत निष्ठा से निभाया।  बेटा! तुम्हें मेरा बहुत-बहुत स्नेहाशीष।''
महिपाल सिंह तोमर, साहित्यकार:
           ''छोटी ,
           अभी-अभी चिंतन पर ,पूज्या माँ के निधन का पता लगा । दुखद समाचार से स्तब्ध हूँ । इस घड़ी  में ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपको इतनी शक्ति प्रदान करें कि इस अपूरणीय क्षति को सहन कर सकें। प्रभु! दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें ।
महेशचन्द्र द्विवेदी-नीरजा द्विवेदी, साहित्यकार:

           ''दीप्ति जी, इस दुखद घड़ी में मेरी और नीरजा की हार्दिक संवेदनाएं स्वीकार करें।''
मंजू भटनागर, साहित्यकार:

           ''यह सच है कि माँ का स्थान कोई नहीं ले सकता और न ही माँ की ममता का कोई सानी है, पर ईश्वर के विधान के सम्मुख हम सबको झुकना ही पड़ता है। माँ (आद. बीबी) ने बहुत शारीरिक कष्ट सहे इनसे उन्हें मुक्ति मिली, ईश्वर उनकी दिवगंत आत्मा को शांति प्रदान करें और आप सबको उनका विछोह सहने की शक्ति प्रदान करें। इस दु:ख की घड़ी में हम आपके साथ हैं. कृपया, आप धैर्य रखें। वे आपके साथ थीं और सदैव आपके साथ ही रहेंगी।''
                                                                                                                          ओम् शांति .....''
मुकेश  इलाहाबादी, साहित्यकार: 
           दीप्ति जी, माँ के निधन का  समाचार पाकर स्तब्ध हूँ. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति और आपको यह  कष्ट सहने  की  शक्ति  दे ! आप संवेदनशील  व भावुक  होने के साथ-साथ  बहुत साहसी  भी  है, इसलिए  आपसे अधिक कुछ नहीं  कहूँगा . सारा काव्यधारा और विचार-विमर्श परिवार इस दुःख की घडी में  तहेदिल से आपके साथ है.......!


ललित वालिया'आतिश', साहित्यकार:

           ''It   is   so shocking  &   heart felt  knowing the sudden demise of  dear   BIBI  (you called her BIBI). May God give you a lot of courage to overcome all the troubles &  hard  times   while BIBI's   soul  rest   in   peace ever.  My sincere condolences.... Ameen.''
विजय निकोर, साहित्यकार:

           ''Extremely and truly sad to hear the news.Having prayed for her and you since Diwali last year, it felt as if she was my mother, too.Today ... my heart feels I have lost 'my' Bibi ji. My heartfelt prayers for peace to her pious soul and for comfort to you. May you treasure the precious moments you had with her. In our tradition, sons take care of elderly parents. You have served Bibi ji single-handed, better than many sons ... like few ever can. May God's hand of mercy be on you, dear Pawas and Manasi.
          
           I hope some day I can be of some service to you or to them. In prayer, for solace to you, and for eternal peace to her soul''

श्रध्दांजलि ...

बेमौसम पतझड़ आया हो जैसे,

पेड़ से झड़ते पत्तों-सी थर्राती,

परिक्लांत पक्षी की पुकार

कराह-सी

सारी हवा में घुल गई है ।

शोक समाचार को सुनते ही आज

अचानक

हवा जहाँ कहीं भी थी,

वहीं की वहीं रूक गई है,

कि जैसे वह दिवंगत आत्मा

केवल तुम्हारी नहीं, वह तो

सारी सृष्टि की माँ थी,

पेड़, पत्ते, पक्षी, मुझको, तुमको,

एकसंग सभी को

आज अनाथ कर गई है ।

पुनर्जन्म सच है यदि तो कैसे कह दूँ

किसी गए जन्म में सच में

वह मेरी माँ नहीं थी ?

वरना यह मन मेरा इतना बेचैन,

इस रास्ते से उस रास्ते,

इस कमरे से उस कमरे,

इतना तिलमिला क्यूँ रहा है ?

जैसे परलोक से कोई डोर मुझको

अनन्य विनती करती, पलछिन आज

उस पुण्य आत्मा के पास

बेतहाशा बुला क्यूँ रही है ?

... और मैं उस पुण्य आत्मा को अपनी

अप्रमेय विनम्र श्रध्दा देने,

झुककर आशीर्वाद लेने,

उस अपरोक्ष आत्मा की ओर अपलक

प्रवर्तित, बेबस, अन्यमनस्क

खिचा चला जा रहा हूँ ।

माँ, माँ, मैं आ रहा हूँ ..।
*
       
शशि  पाधा, साहित्यकार:
           प्रिय दीप्ति , तुम्हारी  माँ   के जाने का  पता चला , बहुत दुखद  समाचार है. समझ नहीं आ  रहा कि  क्या कहूँ, कैसे कहूँ ! धैर्य रखना   और अपने को सम्हालना . ढेर  दुआओं  और  प्यार के साथ,
शालिनी माथुर, लेखिका एवं एक्टिविस्ट:
           ''दीप्ति जी! सुधा जी के मेल से आपकी माँ के निधन का दुखद समाचार मिला। बहुत दुःख हुआ, लेकिन अब आप ईश्वर इच्छा को बलवती मानकर, अपने माँ की आत्मा की शन्ति की दुआ करें और स्वयं भी सहज हो जाए..... बिल्कुल ठीक रहें। हम सभी इस शोक के क्षण में आपके साथ हैं।''
शिशिर साराभाई, साहित्यकार:

           ''दीप्ति जी , इस दुखद घड़ी में हम आपके साथ हैं. पर यह इतना अचानक कैसे हो गया , क्या माँ की तबियत खराब चल रही थी ? आपने एक कर्तव्यनिष्ठ बेटी बन कर भरपूर अपना धर्म निभाया. ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दे और आपको यह भारी दुःख सहने की शक्ति और साहस ...!''
सत्य नारायण शर्मा 'कमल',  साहित्यकार:
           उफ़! हृदयविदारक समाचार दीप्ति की माँ अंततः हमें छोड़ गई। ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति दे दीप्ति और परिवार को इस आघात को सहने हेतु धैर्य और सहनशक्ति प्रदान करे।''
*
बनी रहीं प्रतिमूर्ति सदा तुम
दृढ़ता अनुशासन ममता की
आज तुम्हारे बिना हुए माँ 
हम कितने विपन्न एकाकी

तुम अदृश्य हो कर भी महको
प्राणों में बन  केसर-क्यारी  
हम सबके मानस-पाटल पर
अमर रहे छवि सदा तुम्हारी

स्मृतियों के अंतराल से
उपजी रचनाओं में झाँको
अर्पित हैं भीगी पलकों से
यह विनम्र श्रद्धांजलि माँ को
*
'मैं  चिर कृतज्ञ माता मेरी
तुमने जो प्यार दुलार दिया
नित  संघर्षों से जूझ स्वयं
मुझ पर सारा सुख वार दिया

करती  मनुहार नहीं थकतीं
माँ मेरी ममता में अटकीं
बीमार हुई तब चिकित्सकों के
तीर लिए मुझको भटकीं

क्या  मजाल मुझको लगने दी
हवा  कभी  आभावों   की
मेरी दुखती रग सहलातीं
तुम भुला पीर निज घावों की

तुमने दोनों बाँह पकड़ जब
              धरती पर चलना सिखलाया             
मंजिलें पार करने का साहस
स्वतः मेरे क़दमों ने पाया

तेरे आशीर्वचन कवच बन
रहते   सदा   मुझे    घेरे
विजयश्री  के वरदान बने
तव वरद हस्त सिर पर मेरे

जब जब मुझे डसा दुनिया ने
विष-दंतों  की तीव्र चुभन से
गरल बन गया अमृत माता
एक तुम्हारी मधुर छुवन से

मैं  हूँ   सतत   ऋणी   तेरे     
उपकारों  की  बौछारों  का
तेरे  अंचल  की  छाया  में
पलती ममता मनुहारों का

गीतों की इस श्रद्धांजलि  में
श्रद्धा  के  सुमन  सजाये  हैं
तुमने स्वर दिए सदा  इनको
जो  गीत  बनाए  गाये  हैं

अपनी  गोदी  में  ले  लेना
चिर-निद्रा  जब सो जाऊं मैं
माता  बन पुन: जनम देना 
जब जब धरती पर आऊँ मैं
*
विनयांजलि

उनकी आत्मा की शांति हेतु प्रभु से हम प्रार्थनानुरक्त हैं

हम सभी के लिए यह दीप्ति को मातृ -शोक की घड़ी है
विचार विमर्श विचार-शून्य, काव्यधारा स्तब्ध खड़ी है
पुण्यात्मा "बीबी  " माँ जी  के निधन पर सब संतप्त हैं
मिलता  रहे परिवार को सदा उनका स्नेह-सिक्त आशीर्वाद
दैवत्व  प्राप्त पुरुखों का सदा  रहता  संतानों पर वरद  हाथ
यह माता श्री के ही अनंत पुन्य प्रताप  का दिव्य निखार  है 
कि दीप्ति सी प्रतिभासंपन्न पुत्री,  विनी पावस सा परिवार  है

सुमति सक्सेना लाल
, लेखिका:

           ''दीप्ति बेटा ! बहुत-बहुत दुःख हुआ, लेकिन जाना तो उन्हें था। इसलिए तुम मन को  मज़बूत करो। तुम्हारा उनका बहुत लम्बे समय से मित्रवत संग साथ रहा। इसलिए मुझे पता है कि वे तुम्हें रह-रह कर याद आएंगी। फिर भी जिस साहस से तुम उनकी वृद्धावस्था का सहारा बनी उसी साहस से उनके दूर चले जाने पर, अपना सहारा भी बनो। ढेर प्यार सहित,  दीदी।''
सुधा अरोरा,  लेखिका:

           ''दीप्ति  ! मैं तुम्हारा दर्द समझती हूँ क्योंकि आज तक मैं अपनी माँ के दूर होने की पीड़ा से नहीं उबर पाई हूँ.  माँ तो बस माँ होती है। फिर भी हमें उसकी याद को दिल में बसाए हुए, जीवन जीना होता है, कर्तव्य निबाहने पड़ते हैं, बच्चों, घर, परिवार व मित्रों के रिश्तों को भी प्यार और सम्मान देना होता है।  तुमने जिस दिल से बीबी की सेवा की है, उसे पल-पल मैंने खूब देखा है, जाना है। माँ के आशीष और प्यार को जीने का सहारा बनाओ और बीबी तो  दिलो- दिमाग में हर पल तुम्हारे साथ है ही। तुम जैसी बेटी के लिए भरपूर प्रार्थनाएं और दुआएं।''
सुरेंदर भूटानी, साहित्यकार:


           ''My heartful condolences.You did a great job for her. She deserved a daughter like you.''

संतोष भाऊवाला, साहित्यकार:
विनयांजलि
 
चलते चलते अनेको मोड़ ले लेती है जिंदगी
जाते जाते गहरे दर्द दे जाती है जिंदगी
मन का एक कोना खाली कर जाती हैं जिंदगी
क्या करें नियति की दास होती है जिंदगी
 

संजीव 'सलिल', साहित्यकार:
           ''माँ केवल माँ होती है, मैं पुनः मातृ-विछोह की पीड़ा के पलों की प्रतीति कर रहा हूँ। शोक के इन क्षणों में प्रति पल आपके साथ हूँ। परमपिता से प्रार्थना है कि पूज्य माताश्री को मुक्ति प्रदान करें तथा आप सबको महिमामयी माता श्री के निधन से उपजे शोक तथा रिक्ति को सहन करने का साहस और धैर्य दें। शोक के इन क्षणों में मैं सपरिवार आपके साथ हूँ.''
माँ केवल माँ होती है
*
माँ केवल माँ होती है...
*
शिशु हँसता तो माँ हँसती है,
शिशु रोता माँ रोती है...
*
शिशु का जीवन-पथ निर्मल हो,
सकल मलिनता धोती है...
*
शिशु को तनिक कष्ट हो तो माँ
अपना धीरज खोती है...
*
शिशु की आँखों में निज सपने,
हुलस-पुलक नित बोती है...
*
मैया, माता, बेबे, बीबी,
मम्मी, मदर संगोती है...
*

माँ अमर है
*
माँ अमर है...

आत्म का परमात्म होना, देह-श्वासों का समर है।
दीप्ति माँ की शेष भू पर, याद माँ की चिर अजर है...
*
माँ सनातन प्रथा पावन, संस्कारों की कड़ी है।
माँ सनातन मूल्य शाश्वत, सत्य-शिव-सुन्दर लड़ी है।।
सत्य-चित-आनंद है माँ, ऊर्जस्वित लौ प्रखर है...
*
माँ न अवसानित कभी हो, निधन भी माँ का न होता।
मृत्यु माँ को छू न पाती, सृजन भी माँ का न खोता।।
मरण माँ का कब हुआ?, तज देह आती छवि निखर है...
*
नमन माँ के चरण में कर, संत सुर नर भव तरे हैं।
शब्द प्रार्थना-वन्दना के, भावमय होकर झरे हैं।।
साधना-आराधना का, ढाई आखर चर-अचर है...
*
माँ के दोहे
माँ ममता का गाँव है, शुभाशीष की छाँव.
कैसी भी सन्तान हो, माँ-चरणों में ठाँव..
*
नारी भाषा भू नदी, प्रकृति- जननि हैं पाँच.
माता का ऋण कोई सुत, चुका न सकता साँच..
*
माता हँसकर पालती,  अपने पुत्र अनेक.
क्यों पुत्रों को भार सम, लगती माता एक..
*
रात-रात हँस जागती, सन्तति ले-ले नींद.
माँ बाहर- अन्दर रहें, आज बीन्दणी-बींद..
*
माँ-सन्तान अनेक हैं, सन्तति को माँ एक.
माँ सेवा से हो 'सलिल', जागृत बुद्धि-विवेक..
*
माँ के चरणों में बसे, सारे तीर्थस्थान.
माँ की महिमा देव भी, सकते नहीं बखान..
*
नारी हो या भगवती, मानव या भगवान.
माँ की नजरों में सभी, संतति एक समान..
*
आस श्वास-प्रश्वास है, तम में प्रखर उजास.
माँ अधरों का हास है, मरुथल में मधुमास..
*
माँ बिन संतति का नहीं, हो सकता अस्तित्व.
जान-बूझ बिसरा रही, क्यों संतति यह तत्व..
*
माँ का दृग-जल है 'सलिल', पानी की प्राचीर.
हर संकट हर हो सके, दृढ़ संबल मतिधीर..
*
माँ की स्मृति दीप है, यादें मधुर सुवास.
आँख मूँदकर सुमिर ले, माँ का हो आभास..
*

इस  संसार रूपी भवसागर में  हम सब एकाकी जीवन नैया  खेते  है  और अंत में पंचतत्व में विलीन हो जाते हैं !
                               यह नियत जीवन चक्र है और परमसत्य है !

16 टिप्‍पणियां:

dr deepti gupta ने कहा…

अपने शोक पर जय पाकर सबकी भावनाओं और प्रसन्नता को प्राथमिकता देने वाले विरले ही होते हैं।
आपके औदार्य और सद्विवेक को नमन।

यह दीपावली विशिष्ट है... लक्ष्मी मैया के महाप्रस्थान के पश्चात् लक्ष्मी मैया का आवाहन कर उनकी उपस्थिति की प्रतीति कर पूजन आदि यथा विधि करने से ही उन्हें संतोष होगा। उनसे कभी न मिलने पर भी आपकी लेखनी में उनके द्वारा प्रदत्त संस्कारों की झलक पाकर हम स्नेहाशीषित होते रहे हैं। चाहकर भी आपका दर्शन लाभ अभी संभव नहीं हो पा रहा। अतः, मेरी भावात्मक उपस्थिति अपने निकट अनुभव कीजिए। आपका धैर्य तथा संयम हम सबको आश्वस्त करेगा।

deepti gupta ने कहा…

संजीव जी,
आपके सद्भावपूर्ण शब्दों से मनोबल बढ़ा जिनकी इस समय बहुत ज़रूरत थी!
हम क्या कहे- धन्यवाद, नमन.... सब कम लग रहा है! शायद यह कहना बेहतर है कि माँ के आशीष आपको लगें!
सादर,
दीप्ति

- madhuvmsd@gmail.com ने कहा…

- madhuvmsd@gmail.com

आ. संजीव जी
फोल्डर बहुत ही अनुपम बनाया हैं ,शीर्षक से ले कर अंत तक .हम सब आपके आभारी है , प्रणाम स्वीकार करें
मधु

Pranava Bharti @yahoogroups.com ने कहा…

Pranava Bharti @yahoogroups.com


बहुत सुन्दर संजीव जी!
आप बधाई के हैं पूर्ण हकदार ,
अक्षर-अक्षर में निहित है
'माँ' का स्नेहाशीष,दुलार!!
आपको बहुत बहुत साधुवाद!
प्रणव भारती

salil.sanjiv@gmail.com ने कहा…

sanjiv verma salil

माँ की ममता मधुमयी, मधु सा मधुर निनाद।
'सलिल' धन्य स्पर्श पा, आत्म हुआ आबाद।।

- murarkasampatdevii@yahoo.co.in ने कहा…

- murarkasampatdevii@yahoo.co.in
आ. सलील जी,
मैंने फोन से दीप्ती जी को/ उनकी माँ को श्रद्धा सुमन अर्पित कर दिए हैं. मैंने बहुत दिनों बाद नेट खोला था. क्षमाप्रार्थी हूँ.
सादर,
संपत.

श्रीमती संपत देवी मुरारका
Smt. Sampat Devi Murarka
लेखिका कवयित्री पत्रकार
Writer Poetess Journalist
Hand Phone +91 94415 11238 / +91 93463 93809
Home +91 (040) 2475 1412 / Fax +91 (040) 4017 5842
http://bahuwachan.blogspot.com

Sanjiv verma 'Salil' ने कहा…

आदरणीय संपत जी!
सादर प्रणाम।
मूल बात तो श्रृद्धाजलि अर्पित करना ही है। साथियों ने जिम्मेवारी सौंप दी थी तो यथा शक्ति निर्वहन करना कर्त्तव्य है। आपका लिखित सन्देश मिलने पर जोड़ा जा सकेगा।

Pratap Singh द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

Pratap Singh द्वारा yahoogroups.com

आदरणीय आचार्य जी

बहुत सुन्दर संकलन है।

सादर
प्रताप

v ने कहा…

आदरणीय साथियो !

आज घर में अंतिम पूजन यानी शान्ति-पाठ और हवन था! हांलाकि हम समूह पर अब माँ (बीबी) का ज़िक्र और अधिक नहीं करना चाहते लेकिन हम बहुत दिनों बाद समूह पर आ रहे हैं तो अपनी पहली दो कविताएं उन्हें ही समर्पित करना चाहते हैं! दूसरी कविता कुछ दिनों बाद!

deepti gupta ✆ ने कहा…

‘माँ के जाने बाद ’


तू मेरी माँ, तू ही पिता थी
इसलिए लगा मैंने दो जन को खोया
आँखें थी बरसी, दिल ज़ार-ज़ार रोया
अनगिनत कितनी मासूम यादें
प्यारी - प्यारी वो ढेर सारी बातें
डर लगने पर मैंने ‘माँ’ कह के पुकारा
बन भगवान मेरी, तूने भय से उबारा
दर्द में नाम तेरा लिया तो
भूली मैं पीड़ा, दर्द मेरा भगाया
जब भी हुई मैं असुरक्षित ज़रा भी
तेरा वजूद साया बन मंडराया
उंगली पकड़, डग भरना सिखाया
डगमगाई, गिरी तो उठना सिखाया
माँ, पापा, नानी, मामा और ताया
शब्दों से रिश्तों का पाठ पढाया
बालों में मेरे, जब तूने रिबिन लगाया
नन्हा सा मेरा तन - मन इठलाया
खिलौना टूटा तो बांहों में भर कर
मुझको हंसाया और हाथों झुलाया
तपी जब भी ज्वर से, रात में कभी मैं
गोदी में लिए, मीठी नींद सुलाया
आई सर्दी और बर्फ पड़ी तो
पशमीने में दुबका सीने से लिपटाया
तपती गरमी में बिजली गई तो
हाथों से घंटों पंखा झलाया
फ्राक सिला, कभी स्वेटर बनाया
किताबी सवालों को ही नहीं
जीवन के सवालों को भी, तूने सुलझाया
याद है दिल जब चिटका था मेरा
दरारों को भर तूने, मेरा जीवन बनाया
रिश्तों की सीवन उधडी कभी तो,
बखिया कर, उन्हें पक्का करना सिखाया....
कभी कवच, तो कभी ढाल बनी तू
मुसीबतों में हिम्मत का पाठ पढ़ाया
संस्कारों, भावों,विचारों की संपत्ति
दे कर मुझे संपन्न बनाया
तूने मुझे धडकने, साँसे दीं कितनी
इसका हिसाब कभी न लगाया
छोटी - बड़ी तेरी ढेर सी बातों से
रिश्ते के आँचल को और गाढा पाया
मेरा वजूद ये अक्स है तेरा
तू मेरे जीवन का अनमोल सरमाया !

दीप्ति

७.११.१२

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

Pranava Bharti द्वारा yahoogroups.com

प्रिय दीप्ति,
ये सिखावन साथ रहेगी हमेशा,
ये रिश्ता,ये लगन साथ रहेगी हमेशा।
माँ ही तो बनाती है मन-तन हमारा,
उसकी दुआ साथ रहेगी हमेशा।
ये शरीर तो आना-जाना है,
माँ की ममतामयी पवन साथ रहेगी हमेशा।
स्वस्थ व प्रसन्न रहना
सस्नेह
प्रणव

sanjiv verma salil ✆ ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना, माँ बिन जीवन लगता सूना... इस कार्य को करते समय माँ बार-बार याद आती रहीं। हर त्यौहार पर पूजन के बाद माँ-पापा को याद कर दीप समर्पण करते समय मन भीग जाता है। बीबी की पुण्य स्मृति को पुनः प्रणाम

- manjumahimab8@gmail.com ने कहा…

- manjumahimab8@gmail.com

दीप्ति जी,
बड़ी ही भाव-विभोर , हृदयस्पर्शी उद्गार युक्त कविता पढ़कर मन विचलित हो गया , बहुत ही अदभुत अभिव्यक्ति दी है आपने. शायद ये हर मन के अनुरूप है. माँ को इसीलिए भगवान का रूप कहा गया है, वह पास न रहकर भी पास ही है..आपने उनके विछोह को सहन कर इतनी हिम्मत से उनकी महायात्रा का कार्य सम्पन्न किया यह अभिनंदनीय है. ईश्वर से यही कामना है कि वे आपका मनोबल बनाए रखे.
मेरी ओर से भी एक रचना समर्पित है, जो मैंने अपनी माँ के लिए लिखी थी, जिन्हें खोये मुझे ४५ वर्ष हो गए हैं......

माँ-नमन तुमको

अपने जिस्म की माटी को,

गर्भ के चाक पर चढ़ा,

ममता के थपेड़ों से

तुमने है मुझे घड़ा |

माँ ,

तुम्हारी मुस्कानों ने,

तुम्हारे प्यार भरे स्पर्शों ने,

तुम्हारी साँसों ने,

तुम्हारे लहू ने,

प्राण-प्रतिष्ठा की है मुझमें |

हर सांस में समाई,

तुम्हारी दुआ,

तुम्हारी आशीषें,

सदैव मेरे,

कंटकाकीर्ण-पथ पर,

नरम पान्खुरियों का,

अहसास देती रहेंगीं.

मेरे हर दर्द को हरती रहेंगी.

तुम्हारा महाप्रयाण शांतिमय हो,

सभी शारीरिक-मानसिक पीड़ा से मुक्त हो,

ईश्वर के अंक में तुम विश्रांति पाओ,

हें वचन मेरा तुमको,

करती रहूँगी याद केवल खुशी के पलों को,

महकाती रहूंगी तुम्हारी प्यारी यादों और सीखों से सबको

ना करना तुम चिंता हमारी,

परम पिता परमेश्वर जोह रहें हैं बाट तुम्हारी.

अलविदा -अलविदा माँ ....

है नमन तुमको|

------मंजु महिमा

Kanu Vankoti, kavyadhara ने कहा…

Kanu Vankoti, kavyadhara


संजीव जी,
बहुत सराहनीय प्रस्तुति... पृष्ठभूमि में पंचतत्व की प्रतीक 'माटी'का हल्का सा रंग और अंत में नदी / सागर में एकाकी नौका, आसमां में धुंधला सा चाँद, इन सबने श्रृद्धांजलि को अधिक 'सार्थक' बना दिया.

बहुत सुन्दर और मन को खीचने वाला संकलन ..............

कनु

- shishirsarabhai@yahoo.com ने कहा…

- shishirsarabhai@yahoo.com

Well done Sanjeev ji!

You have given the perfect touch to the condolence folder through this subdued colour and symbolic picture of nature with meaningful lines there upon:

इस संसार रूपी भवसागर में हम सब एकाकी जीवन नैया खेते है और अंत में पंचतत्व में विलीन हो जाते हैं!
यह नियत जीवन चक्र है और परमसत्य है!

Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

Indira Pratap द्वारा yahoogroups.com

प्रिय संजीव भाई ,
भावों से भरी प्रणतान्जलि की प्रस्तुति से मन भर भर आया| सब चित्रपट की तरह मन पर अंकित हो गया|एक ही पंक्ति मस्तिष्क में आई सो उसे ही श्रद्धासुमन की तरह अर्पित कर रही हूँ|
"हे, क्षण भंगुर भव्, राम राम!" (मैथिलीशरण गुप्त) सागर प्रवास से अभी-अभी लौटी हूँ, वहां वायरल ने पकड़ लिया|जल्दी ही मंच पर लौटती हूँ शेष शुभ|इतने दिन सभी साथियों को बहुत मिस किया|
इंदिरा