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सोमवार, 21 जनवरी 2013

सामयिक व्यंग्य कविता : राजा नंगा है ॐ प्रकाश तिवारी

सामयिक व्यंग्य कविता : 
राजा नंगा है
ॐ प्रकाश तिवारी 
 
*
राजा जी को 
कौन बताए 
राजा नंगा है ।

आँखों पर मोटी सी पट्टी
मुँह में दही जमा
झूठी जयकारों में उसका
मन भी खूब रमा 

जिस नाले वह
डुबकी मारे 
वो ही गंगा है ।

रुचती हैं राजा के मन को
बस झूठी तारीफें
उसको कोसा करें बला से
आगे की तारीखें

उसके राजकाज में
सच कहना
बस पंगा है

पीढ़ी दर पीढ़ी उसने है
पाया या दर्जा 
ताका करती है उसका मुँह
पढ़ी-लिखी परजा

वह मुस्काए
मुल्क समझ लो
बिल्कुल चंगा है

- ओमप्रकाश तिवारी

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Om Prakash Tiwari
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