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गुरुवार, 17 जनवरी 2013

लघुकथा सहानुभूति खलील जिब्रान

लघुकथा 
सहानुभूति 
खलील जिब्रान 
*
शहर भर की नालियां और मैला साफ़ करने वाले आदमी को देख दार्शनिक महोदय ठहर गए.

"बहुत कठिन काम है तुम्हारा ! यूँ गंदगी साफ़ करना. कितना मुश्किल होता होगा ! दुःख है मुझे ! मेरी सहानुभूति स्वीकारो. " दार्शनिक ने सहानुभूति जताते हुए कहा.

"शुक्रिया हुज़ूर !" मेहतर ने जवाब दिया.

"वैसे आप क्या करते हैं ?" उसने दार्शनिक से पूछा. 

" मैं ? मैं लोगों के मस्तिष्क पढ़ता हूँ ! उन के कृत्यों को देखता हूँ ! उन की इच्छाओं को देखता हूँ ! विचार करता हूँ ! " दार्शनिक ने गर्व से जवाब दिया. 

"ओह ! मेरी सहानुभूति स्वीकारें जनाब !" मेहतर का जवाब आया.

***
[खलील जिब्रान की 'सैंड एंड फ़ोम' से.]

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