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गुरुवार, 7 मार्च 2013

गीत वंशी संपत देवी मुरारका

गीत 
वंशी
संपत देवी मुरारका 
*
दूर कहीं वंशी बजती है,
सुनती हूँ मैं कान लगाकर|
मेरा मन प्यासा-प्यासा है,
एक बूंद की अभिलाषा ह|
इस अतृप्ति से पार लगाओ,
मन में यह जगती आशा है|
आओ मेरे ह्रदय-गेह में,
बैठी हूँ मैं ध्यान लगाकर|
जगमग कर दो मेरा जीवन,
आनंदित हो जाए तन-मन|
जब-जब मैं अपने को देखूं,
तुम बन जाओ मेरे दर्पण|
तेरे कदमों की आहट पर,
मैं व्याकुल हूँ प्राण बिछाकर|
यह अपने सपनों का घर है,
तेरा-मेरा प्यार अमर है|
आओ मिलकर गढ़ें घरोंदा,
तुझ में मुझ में क्या अंतर है|
कब से तुम्हें पुकार रही मैं,
मीरा जैसी तान लगाकर|
दूर कहीं वंशी बजती है,
सुनती हूँ मैं कान लगाकर|
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