कुल पेज दृश्य

सोमवार, 18 मार्च 2013

स्त्री - पुरुष के संपत्ति अधिकार -तसलीमा नसरीन

बांगला देश में मुस्लिम उत्तराधिकार: शरिया के अनुसार स्त्री - पुरुष के संपत्ति अधिकार 
सन्दर्भ: छोटे-छोटे दुःख, तसलीमा नसरीन, २४-२८. 

= मृत औरत को कोई संतान या संतान की संतान न हो तो औरत की जायदाद का १/२  हिस्सा उसके पति को मिलता है. मृत औरत की कोई संतान हो (पति की जायज़ सन्तान न हो तो भी) पति को १/४  हिस्सा मिलेगा. मृत पति की सन्तान या संतान की संतान हो तो पति की संपत्ति में बीबी को १/४ हिस्सा तथा पति की संतान होने पर १/८ हिस्सा मिलता है. 

= किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति का  १/३ हिस्सा माँ को तथा २/३ हिस्सा पिता को मिलता है. २ या २ से अधिक भाई-बहिन हों तो  माँ को १/६ भाग तथा  पिता को ५/६ भाग मिलता है. भाई-बहिनों को कुछ नहीं मिलता क्योंकि उनके माँ-बाप मौजूद होते हैं. 

= उत्तराधिकार-लाभ के मामले में  बेटी का भाग १/२, दो से अधिक बेटियां हों तो सबको मिलकर २/३ भाग  मिलता है. बेटा भी हो तो हर बेटे को बेटी से दोगुना भाग मिलता है. 

= काका और फूफी को २/३ तथा मामा और खाला को १/३ भाग मिलता है. 
(सार: सुन्नी उत्तराधिकार कानून में माता-पिता, बेटे-बेटी के हक समान नहीं हैं.) 
बांगला देश में हिन्दू उत्तराधिकार : (मिताक्षरा तथा दायभाग प्रणाली )

= दायभाग प्रणाली के अनुसार व्यक्ति स्वार्जित संपत्ति मनमर्जी से हस्तांतरित कर सकता है. मृत व्यक्ति के उत्तराधिकारियों के ३ वर्ग- सपिंड जो पिंडदान में भाग लें, साकुल्य जो श्राद्ध के समय पिंड पर लेप करें तथा समानोदक जो श्राद्ध में पिंड पर जल चढ़ाएं हैं. मातृ-पितृकुल की ३ पीढ़ी (नाना, नाना के पिता, नाना के पिता के पिता - पिता, पितामह, प्रपितामह) सपिंड मान्य हैं चूंकि मृत व्यक्ति अपने जीवन-काल में उन्हें पिंडदान करता. मृत व्यक्ति के श्राद्ध में जो व्यक्ति पिंड दान करते हैं वे सब (पुत्र, पोत, पड़पोता, नाती, पोते/पोती के पुत्र ) तथा मृतक के पूर्वजों को पिंड दान करते रहे व्यक्ति मृतक के सपिंड होते हैं.

= सपिंडों के अग्राधिकार: आधार क्रम १. पुत्र, २. पौत्र, ३. प्रपौत्र, ४. विधवा पत्नी (पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र जिन्दा न हों तो) ५. बेटी (पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, विधवा पत्नी जिन्दा न हों तो) बदचलन/पुत्रहीना बेटी उत्तराधिकारी नहीं हो सकती. ६. नाती (बेटी की मौत के बाद सपिंड के नाते), ७. पिता, ८. माँ (बदचलन न हो तो), ९. भाई, १०. भाई का बेटा, ११. भाई के बेटे का बेटा, १२. बहिन का बेटा, १३. पितामह, १४.पितामही, १५. पिता का भाई, १६. चचेरा/तयेरा भाई, १७.चचेरे/तयेरे भाई का बेटा, १८. फुफेरा भाई, १९. पिता के पिता के पिता, २०. पिता के पिता की माँ, २१. पिता का फूफा, २२. उसका बेटा, २३. उसका पौत्र, २४. पिता के पिता की बहिन का पुत्र, २५. पुत्र की कन्या का पुत्र, २६. पुत्र के पुत्र की कन्या का पुत्र, २७. भाई के पुत्र की कन्या का पुत्र, २८. फूफा की कन्या का पुत्र, २९. फूफा के पुत्र की कन्या का पुत्र, ३०. पिता के फूफा की कन्या का पुत्र, ३०. पिता के फूफा की कन्या का पुत्र, ३१. पिता के फूफा के पुत्र की बेटी का पुत्र, ३२. माँ का पिता, ३३. माँ का भाई, ३४.उसका पुत्र, ३५. उसका पौत्र, ३६. माँ की बहिन का पुत्र, ३७. माँ के पिता का पिता, ३८. उसका पुत्र, ३९. उसका पौत्र, ४०. उसका प्रपौत्र, ४१. उसकी बेटी का बेटा, ४२. माता के पिता के पिता का पिता, ४३. उसका पुत्र, ४४. उसका पौत्र, ४५. उसका प्रपौत्र , ४६. उसकी बेटी का पुत्र, ४७. माँ के पिता के पुत्र की बेटी का पुत्र, ४८. उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र, ४९. माँ के पिता के पिता के बेटे की बेटी का पुत्र, ५०उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र,५१.माँ के पिता के पिता के पिता की बेटी का पुत्र, ५२. उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र.

सार: वरीयता पिता, पुत्र, पुत्र, प्रपौत्र वर्ग को. बीबी, बेटी, माँ को मर्द उत्तराधिकारी न होने पर भी सशर्त (बदचलन/पुत्रहीन न हो तो ही). नाती तथा भांजा सूची में बाद में ही सही किन्तु हैं पर बहिन, उसकी बेटी, बहिन की नातिन सूची में नहीं हैं। पिता के भाई-भतीजे तथा उनके पोते सूची में सम्मिलित किन्तु पिता की बहिन तथा उसकी बेटी सूची में नहीं हैं. पिता के फूफा-काका, उनके बेटे-पोते, पिता के पिता की बहिन का बेटा, उसकी बेटी का पुत्र भी सूची में है किन्तु काका-फूफा की बेटी, पितामह की बहिन की बेटी या बेटे की बेटी की बेटी नहीं है. माँ के भाई-पिता, मामा का बेटा, पोता, पड़पोता हिस्सेदार हैं किन्तु माँ की बहिन-माँ, मामा की बेटी-नातिनों का कोई हक नहीं है. माँ की बहिन हिस्सेदार नहीं है पर उसी बहिन का पुत्र हिस्सेदार है. माँ के प्रपिता के पुत्र की बेटी हिस्सेदार नहीं है पर उसी का पुत्र हिस्सेदार है. सार यह की जायदाद भिन्न गोत्र में भले ही चली जाए पर स्त्री को न मिले. स्त्री का हिस्सा इस तरह है कि उससे बाद की पुरुष पीढ़ी को पहले पात्रता है, अपना क्रम आने तक स्त्री जीवित ही नहीं रह पाती और वंचित हो जाती है.   

साकुल्य और समानोदक भी पिता के पिता, तस्य पिता, बेटे के बेटे, उसके बेटे, उसके पोते-प्द्पोते ही हकदार हैन. इस तालिका में स्त्री का नामोनिशान  नहीं है. 

कोई टिप्पणी नहीं: