कविता:
मीत मेरे!
संजीव
*
मीत मेरे!
राह में छाये हों
कितने भी अँधेरे।
चढ़ाव या उतार,
सुख या दुःख
तुमको रहे घेरे।
पूर्णिमा स्वागत करे या
अमावस आँखें तरेरे।
सूर्य प्रखर प्रकाश दे या
घेर लें बादल घनेरे।
रात कितनी भी बड़ी हो,
आयेंगे फिर-फिर सवेरे।
मुस्कुराकर करो स्वागत,
द्वार पर जब जो हो आगत
आस्था का दीप मन में
स्नेह-बाती ले जलाना।
बहुत पहले था सुना
अब फिर सुनाना
दिए से
तूफ़ान का लड़ हार जाना।
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मीत मेरे!
संजीव
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मीत मेरे!
राह में छाये हों
कितने भी अँधेरे।
चढ़ाव या उतार,
सुख या दुःख
तुमको रहे घेरे।
पूर्णिमा स्वागत करे या
अमावस आँखें तरेरे।
सूर्य प्रखर प्रकाश दे या
घेर लें बादल घनेरे।
रात कितनी भी बड़ी हो,
आयेंगे फिर-फिर सवेरे।
मुस्कुराकर करो स्वागत,
द्वार पर जब जो हो आगत
आस्था का दीप मन में
स्नेह-बाती ले जलाना।
बहुत पहले था सुना
अब फिर सुनाना
दिए से
तूफ़ान का लड़ हार जाना।
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