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मंगलवार, 14 मई 2013

MUKTIKA (BUNDELI) ACHARYA SANJIV VERMA 'SALIL'


बुन्देली मुक्तिका
संजीव
*

मन खों रखियो हर दम बस में.
पानी बहै न रस में, नस में.

कसर न करियो स्रम करबे में.
खा खें तोड़ न दइयो कसमें.

जी से मिलबे खों जी तरसे
जी भर जी सें करियो रसमें.

गरदिस में जो संग निभाएं
संग उनई खों धरियों जस में.

कहूँ न ऐसो मजा मिलैगो
जैसो मजा मिलै बतरस में.
=================
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

5 टिप्‍पणियां:

indira pratap ने कहा…

संजीव भाई ये मुक्तिकाएँ तो मैं समझ गई | कहीं ग़लत भी हो सकती हूँ | अच्छी लगीं | लिखते रहिए| दिद्दा

pran sharma ने कहा…

pran sharma via yahoogroups.com

SALIL BHAI KEE KYAA BAAT HAI ! GYAAN KE SAAGAR HAI .

PRAN SHARMA

pran sharma ने कहा…

pran sharma via yahoogroups.com

SALIL BHAI KEE KYAA BAAT HAI ! GYAAN KE SAAGAR HAI .

PRAN SHARMA

indira pratap ने कहा…

indira sharma via yahoogroups.com

संजीव भाई ,बड़े दुःख से कह रही हूँकि यद्यपि सागर में मैंने लगभग जीवन के ४० वर्ष गुजारे हैं पर बुन्देलखंडी मुझे बिलकुल नहीं आती , बस उतनी ही जितनी से काम चलाया जा सके ,यूनिवर्सिटी कैम्पस में ही जीवन बीता जहां हिंदी इंग्लिश और उर्दू मिश्रित हिंदी क़ा ही माहौल मिला | मेरा अपना महिलाओं का कोई सर्किल नहीं था अत: उनसे भी कुछ सीख नही पाई | मेरी एक मित्र ने बुन्देली शब्द कोष पर काम किया है , अगर उससे कोई कांटेक्ट हो सका तो आपको सूचित करूँगी| सागर शहर से लगभग अपरिचित ही हूँ | मैं हिंदी के एक प्रोफेसर का पता आप को लिख दूंगी आप मिसिज प्रताप चन्द्र के नाम का सन्दर्भ दे कर उनसे कांटेक्ट कर सकते है ,मेरे छोटे भाई जैसे हैं | आपकी सहायता अवश्य करेंगे ऐसी मुझे उम्मीद है | दिद्दा

deepti gupta ने कहा…

deepti gupta via yahoogroups.com

संजीव जी ,

खा खें तोड़ न दइयो कसमें....
...लोकभाषा की इस मिठास के क्या कहने!

गरदिस में जो संग निभाएं
.........बहुत सही
संग उनई खों धरियों जस में..........
..............खूब

कहूँ न ऐसो मजा मिलैगो
जैसो मजा मिलै बतरस में.....
.....बतरस लालच सर्वोपरि

ढेर साधुवाद.
दीप्ति .