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गुरुवार, 27 जून 2013

doha: acharya sanjiv verma 'salil'

दोहा सलिला :
कर  न अपेक्षा ...
संजीव
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कर न अपेक्षा मूढ़ मन, रख मन में संतोष।
कर न उपेक्षा किसी की, हो तो मत कर रोष।।
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बुरा न इतना बुरा है, अधिक बुरा है अन्य।
भला भले से भी अधिक, खोजो मिले अनन्य।।
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जो  न भलाई देखता, उसका मन है हीन।
जो न सराहे अन्य को, उस सा अन्य न दीन।।
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'सलिल' न कल पर छोडिए, आज कीजिए काज।
कल क्या जाने क्या घटे?, कब-कैसे किस व्याज?
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अघट  न घटता है कभी, घटित हुआ जो ठीक।
मीनमेख मत कर 'सलिल', छोड़ पुरानी  लीक।।
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