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शनिवार, 13 जुलाई 2013

chitra par kavita: kahan ja rahe ho... -sanjiv

चित्र पर कविता:
प्रस्तुत है चित्र, रच दीजिए इस पर सरस कविता 
http://static.mydailyhonk.com/wp-content/uploads/2013/05/Rich-2.jpg
नव गीत:कहाँ जा रहे हो…
संजीव
*
पाखी समय का
ठिठक पूछता है
कहाँ जा रहे हो?...
*
उमड़ आ रहे हैं बादल गगन पर
तूफां में उड़ते पंछी भटककर
लिये हाथ में हाथ जाते कहाँ हो?
बैठे हो क्यों बन्धु! खुद में सिमटकर
साथी प्रलय से
सतत जूझता और
सुस्ता रहे हो?...
*
मलय कोई देखे कैसे नयन भर
विलय कोई लेखे कैसे शयन कर
निलय काँपते देख झंझा-झकोरे
मनुज क्यों सशंकित थमकर, ठिठककर  
साथी 'सलिल' का 
नहीं सूझता देख
मुस्का रहे हो?...
*


 

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