bhasha vividha: sirayaki doha salila -sanjiv
भाषा विविधा:
दोहा सलिला सिरायकी : २
संजीव
[सिरायकी (लहंदा,
पश्चिमी पंजाबी, जटकी, हिन्दकी, मूल लिपि
लिंडा): पंजाब - पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की लोकभाषा, उद्गम पैशाची-प्राकृत-कैकई से, सह बोलियाँ मुल्तानी, बहावलपुरी तथा थली.
सिरायकी में हिंदी के हर वर्ग का ३ रा व्यंजन (ग,ज,ड, द तथा ब) उच्च घोष में बोला तथा रेखांकित कर लिखा जाता है. उच्चारण में 'स' का 'ह', 'इ' का 'हि', 'न' का 'ण' हो जाता है. सिरायकी में दोहा लेखन में हुई त्रुटियाँ इंगित
करने तथा सुधार हेतु सहायता का अनुरोध है.]
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हब्बो इत्था मिलण हे, निज करमां डा फल।
रब्बा मैंनूँ मुकुति दे, आतम पाए कल।।
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अगन कुंद हे पाप डा, राजनीति हे छल।
जद करणी भरणी तडी, फिर उगणे कूँ ढल।।
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लुक्का-छिप्पी खेल कूँ, धूप-छाँव अनुमाण।
सुख-दुःख हे चित-पट 'सलिल', सूझ-बूझ वरदाण।।
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खुदगर्जी तज जिंदगी, आपण हित दी सोच।
संबंधों डी जान हे, लाज-हया-संकोच।।
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ह्ब्बो डी गलती करे, हँस-मुस्काकर माफ़।
कमजोरां कूँ पिआर ही, हे सुच्चा इन्साफ।।
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