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शनिवार, 10 अगस्त 2013

nagpanchami

नागपंचमी :
लावण्या शाह

*

नाग पँचमी के अवसर पर भारत के उज्जैन शहर के मँदिर मेँ भगवान शिव और पार्वती जी की प्रतिमा पर शेष नाग छत्र किये हुए हैँ
जिसकी अत्याधिक महिमा है 

  • नाग पूर्वजोँ को भी कहा गया है कि सँपत्ति व सँतति के प्रति बहुत मोह या लोभ के कारण नाग योनि मेँ पैदा होकर वे रखवाली करते हैँ -
    गाईड फिल्म मेँ वहीदा जी का भी एक रोमाँचक सर्प नृत्य दीखलाया गया था -- नाग लोक पाताल लोक है जिसकी राजधानी भोगावती कहलाती है
  • तो आइये, नाग देवताओँ को प्रणाम करेँ --
  • नाग सारे कश्यप ऋषि की सँतान हैँ - और कद्रू और वनिता जो गरिद की माता थीम वे कश्यप जी की पत्नीयाँ थीँ
  • Anantha: अनन्त शेष नाग जिस पर महाविष्णु दुग्ध सागर मेँ शयन करते हैँ
  • Balarama: बलराम: श्री कृष्ण के बडे भाई, रेवती के पुत्र जो शेष नाग के अवतार हैँ
  • Karkotaka: कर्कोटक- जों आबोहवा के नियँत्रक हैँ
  • Padmavati: पद्मावती: राजा धरणेन्द्र की नाग साथिन
  • Takshaka: तक्षक :नागोँ के राजा
  • UlupiArjuna : की पत्नी : नाग वँश की राज महाभारत से (epic Mahabharata.)
  • Vasuki: वासुकी : नागोँ के राजा जिन्होँने देवोँ की अमृत लाने मेँ सहायता की (devas ) Ocean of Milk.

 WHERE NĀGA LIVE

  • Bhoga-vita: भोगावती : पाताल की राजधानी
  • Lake Manosarowar: मानसरोवर : नाग भूमि
  • Mount Sumeru : सुमेरु पर्बत
  • Nagaland : भारत का नागालैन्ड प्राँत
  • Naggar: नग्गर ग्राम : हिमालय की घाटी मेँ बसा Himalayas, तिब्बत
  • Nagpur: नागपुर शहर, भारत (Nagpur is derived from Nāgapuram, )
  • Pacific Ocean: (Cambodian myth)
  • Pātāla: (or Nagaloka) the seventh of the "nether" dimensions or realms.
  • Sheshna's well: in Benares, India, said to be an entrance to Patala.

नाग देवता पर फिल्माये गये नृत्य देखेँ जायेँ - लीजिये ..ये रहे लिन्क

शेष नाग की शैया पर लेटे हुए महा विष्णु की प्राचीन प्रतिमा
शिवलिँगम्`

नागिन फिल्म के गीत मन मेँ गूँज रहे हैँ - 
" मन डोले मेरा तन डोले रे मेरे दिल का गया करार रे ये कौन बजाये बाँसुरिया "


और श्रीदेवी की छवि मन पटल पर उपस्थित हो गयी ! 

नगीना मेँ नीली , हरी आँखोँ के लेन्स लगाये , सँपेरे बने अमरीश पुरी को गुस्से से फूँफकारती हुई, 
डराती हुई लहराती हुई , नाचते हुए, लता जी के स्वर मेँ गाती हुई जादूभरी नागिन 
" मैँ तेरी दुशमन, तू दुशमन है मेरा, मैँ नागिन तू सँपेरा ..आ आ "

और भी एक अद्भुत नृत्य है - श्रीदेवी और जया प्रदा 
दोनोँ साथ नाच रहीँ हैँ मँदिर मेँ और जीतेन्द्र गा रहे हैँ " हे नाग राजा तुम आ जाओ " -

Nameste
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संजीव 'सलिल'
नागिन जैसी झूमतीं , श्यामल लट मुख गौर.
ना-गिन अनगिनती लटें, लगे आम्र में बौर..
नाग के बैठने की मुद्रा को कुंडली मारकर बैठना कहा जाता है. इसका भावार्थ जमकर या स्थिर होकर बैठना है. इस मुद्रा में सर्प का मुख और पूंछ आस-पास होती है. इस गुण के अधर पर कुण्डलिनी छंद बना है जिसके आदि-अंत में एक सामान शब्द या शब्द समूह होता है.

कुंडली  छंद :

हिंदी की जय बोलिए, हो हिंदीमय आप.
हिंदी में नित कार्य कर, सकें विश्व में व्याप..
सकें विश्व में व्याप, नाप लें समुद ज्ञान का.
नहीं व्यक्ति का, बिंदु 'सलिल' राष्ट्रीय आन का..
नेह-नरमदा नहा बोलिए होकर निर्भय.
दिग्दिगंत में गूज उठे, फिर हिंदी की  जय..
*
नव संवत्सर पर करें, शब्द-पुत्र संकल्प.
राष्ट्र-विश्व हित ही जियें, इसका नहीं विकल्प..
इसका नहीं विकल्प, समय के साथ चलेंगे.
देश-दुश्मनों की छाती पर दाल दलेंगे..
जीवन का हर पल, मानव सेवा का अवसर.
मानव में माधव देखें, शुभ नव संवत्सर..
*
साँसों के साम्राज्य का, वह मानव युवराज.
त्याग-परिश्रम का रखा, जिसने निज सिर ताज..
जिसने निज सिर ताज, शीश को नित्य नवाया.
अहंकार का पाश 'सलिल' सम, व्यर्थ बनाया..
पीड़ा-वन में राग छेड़ता, जो हासों के.
उसको ही चंदन-वंदन, मिलते श्वासों के..
*
हर दिन, हर पल कर सके, यदि मन सच को याद.
जग-जीवन आबाद कर, खुद भी होता शाद..
खुद भी होता शाद, नेह-नर्मदा बहाता.
कोई रहे न गैर, सकल जग अपना पाता.
कंकर में शंकर दिखते, उसको हर पल-छिन.
'सलिल' करे अभिषेक, विहँसकर उसका हर दिन..
*
धुआँ-धुआँ सूरज हुआ, बदली-बदली धूप.
ऊषा संध्या निशा सा, दोपहरी का रूप..
दोपहरी का रूप,  झुका आकाश दिगंबर.
ऊपर उठती धारा, गले मिल, मिटता अंतर.
सिमट समंदर खुद को, करता कुआँ-कुआँ.
तज सिद्धांत सियासत-सूरज धुआँ-धुआँ..
*
मरुथल बढ़ता, सिमटता हरियाली का राज.
धरती के सिर पर नहीं, शेष वनों का ताज.
शेष वनों का ताज, नहीं पर्वत-कर बाकी.
सलिल बिना सलिलायें, मधुशाला बिन साक़ी.
नहीं काँपता पंछी-कलरव बिन क्यों मानव?
हरियाली का ताज सिमटता, बढ़ता मरुथल..
*
कविता कवि करता अगर, जिए सुकविता आप.
सविता तब ही सकेगा, कवि-जीवन में व्याप..
कवि-जीवन में व्याप, लक्ष्मी दूर रहेगी.
सरस्वती नित लेकर, सुख-संतोष मिलेगी..
निशा उषा संध्या वंदन कर, हर ढल-उगता.
जिए सुकविता आप, अगर कवि करता कविता..
*

1 टिप्पणी:

lavanya shah ने कहा…

आचार्य जी द्वारा प्रस्तुत
एतिहासिक जानकारियाँ व आचार्य जी की कुंडलियाँ
पढ़ कर अच्छा लगा ।
धन्यवाद
सादर
- लावण्या

Nameste
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