:दोहा सलिला :
गले मिले दोहा-यमक
संजीव
*
चंद चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान
*
जहाँ पनाह मिले वहीं, बस बन जहाँपनाह
स्नेह-सलिल का आचमन, देता शांति अथाह
*
स्वर मधु बाला चन्द्र सा, नेह नर्मदा-हास
मधुबाला बिन चित्रपट, है श्रीहीन उदास
*
स्वर-सरगम की लता का,प्रमुदित कुसुम अमोल
खान मधुरता की लता, कौन सके यश तौल
*
भेज-पाया, खा-हँसा, है प्रियतम सन्देश
सफलकाम प्रियतमा ने, हुलस गहा सन्देश
*
गुमसुम थे परदेश में, चहक रहे आ देश
अब तक पाते ही रहे, अब देते आदेश
*
पीर पीर सह कर रहा, धीरज का विनिवेश
घटे न पूँजी क्षमा की, रखता ध्यान विशेष
*
माया-ममता रूप धर, मोह मोहता खूब
माया-ममता सियासत, करे स्वार्थ में डूब
*
जी वन में जाने तभी, तू जीवन का मोल
घर में जी लेते सभी, बोल न ऊँचे बोल
*
विक्रम जब गाने लगा, बिसरा लय बेताल
काँधे से उतरा तुरत, भाग गया बेताल
*
गले मिले दोहा-यमक
संजीव
*
चंद चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान
*
जहाँ पनाह मिले वहीं, बस बन जहाँपनाह
स्नेह-सलिल का आचमन, देता शांति अथाह
*
स्वर मधु बाला चन्द्र सा, नेह नर्मदा-हास
मधुबाला बिन चित्रपट, है श्रीहीन उदास
*
स्वर-सरगम की लता का,प्रमुदित कुसुम अमोल
खान मधुरता की लता, कौन सके यश तौल
*
भेज-पाया, खा-हँसा, है प्रियतम सन्देश
सफलकाम प्रियतमा ने, हुलस गहा सन्देश
*
गुमसुम थे परदेश में, चहक रहे आ देश
अब तक पाते ही रहे, अब देते आदेश
*
पीर पीर सह कर रहा, धीरज का विनिवेश
घटे न पूँजी क्षमा की, रखता ध्यान विशेष
*
माया-ममता रूप धर, मोह मोहता खूब
माया-ममता सियासत, करे स्वार्थ में डूब
*
जी वन में जाने तभी, तू जीवन का मोल
घर में जी लेते सभी, बोल न ऊँचे बोल
*
विक्रम जब गाने लगा, बिसरा लय बेताल
काँधे से उतरा तुरत, भाग गया बेताल
*
5 टिप्पणियां:
Ram Gautam
आ. आचार्य सलिल जी;
आपके दोहे पुनः सशक्त और अच्छे लगे, आपको बधाई !!!
सादर- गौतम
Mahesh Dewedy via yahoogroups.com
सदैव की भांति उत्कृष्ट दोहे. बधाई सलिल जी.
महेश चंद्र द्विवेदी
Pratap Singh via yahoogroups.com ने कहा…
आदरणीय आचार्य जी
कुछ दोहे अच्छे हैं. किन्तु अधिकतर में सुधार की आवश्यकता है.
चंद, चंद तारों सहित, करे मौन गुणगान
रजनी के सौंदर्य का, जब तक हो न विहान …… बहुत ही सुन्दर दोहा और यमक भी है.
*
जहाँ पनाह मिले वहीं, बस बन जहाँपनाह
स्नेह-सलिल का आचमन, देता शांति अथाह …
प्रथम चरण में जगण दोष है. यमक भी नहीं है. यमक वह होता है जब दो शब्दों का दो या अधिक बार प्रयोग हो और उनका अर्थ भिन्न भिन्न हो. आपने 'जहाँ" का प्रयोग किया जो की एक स्वतंत्र शब्द है. "पनाह" का प्रयोग किया जो कि दूसरा एक स्वतंत्र शब्द है. फिर आपने "जहाँपनाह" का प्रयोग किया जो कि तीसरा एक स्वतंत्र शब्द है.
*
स्वर मधु बाला चन्द्र सा, नेह नर्मदा-हास
मधुबाला बिन चित्रपट, है श्रीहीन उदास ……… इसमे यमक कहाँ है ? उपर्युक्त दोहे की तरह ही प्रयोग है.
*
स्वर-सरगम की लता का,प्रमुदित कुसुम अमोल
खान मधुरता की लता, कौन सके यश तौल ……मुझे अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाया।
*
भेज-पाया, खा-हँसा, है प्रियतम सन्देश …. प्रथम चरण में मात्रा दोष है.
सफलकाम प्रियतमा ने, हुलस गहा सन्देश …… तृतीय चरण में विन्यास दोष है.
*
गुमसुम थे परदेश में, चहक रहे आ देश
अब तक पाते ही रहे, अब देते आदेश ……… यमक नहीं है. दूसरे दोहे की तरह ही शब्द को तोड़ा गया है
*
पीर, पीर सह कर रहा, धीरज का विनिवेश
घटे न पूँजी क्षमा की, रखता ध्यान विशेष ……. यह दोहा सुन्दर है. यमक भी है.
*
माया-ममता रूप धर, मोह मोहता खूब
माया-ममता सियासत, करे स्वार्थ में डूब… तृतीय चरण में विन्यास दोष है. यमक भी नहीं है. दूसरी बार प्रयुक्त माया और ममता भले ही दो राजनेत्रियों के नाम हैं किन्तु उनका अर्थ तो वही है जो पहली बार के प्रयोग में है
*
जी वन में जाने तभी, तू जीवन का मोल
घर में जी लेते सभी, बोल न ऊँचे बोल…। यमक नहीं है. शब्द विच्छेदन है.
*
विक्रम जब गाने लगा, बिसरा लय बेताल
काँधे से उतरा तुरत, भाग गया बेताल …। यहाँ भी यमक नहीं है.
सादर
प्रताप
Pratap Singh via yahoogroups.com
मेरे कथन में एक त्रुटि हो गयी थी ---
यमक वह होता है जब दो शब्दों का दो या अधिक बार प्रयोग हो और उनका अर्थ भिन्न भिन्न हो.
सुधार - यमक वह होता है जब एक शब्द का दो या अधिक बार प्रयोग हो और उनका अर्थ भिन्न भिन्न हो.
सादर
प्रताप
प्रियवर
अलंकार पारिजात, लेखक नरोत्तम दास स्वामी, पृष्ठ १२-१३ देखें: यमक: ' जब शब्द (दो या दो से अधिक) बार आवे और अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो . कभी-कभी पूरा शब्द दुबारा न आकर उस शब्द का कुछ अंश दुबारा आता है, उस अवस्था में भी यमक होता है.
उदाहरण :
१. तीन बेर खाती थीं वे बीन बेर खाती हैं. बेर = बार, बेर नाम का फल
२. बना अतीवाकुल म्लान चित्त को / विदारता था तरु कोविदार को - हरिऔध
३. कुमोदिनी मानस मोदिनी कहीं
४. फूल रहे फूलकर फूल उपवन में
५. पछतावे की परछाई सी तुम भू पर छाई हो कौन
६. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान
७. यों परदे की इज्जत परदेसी के हाथ बिकानी थी - सुभद्रा कुमारी चौहान
८. रसिकता सिकता सम हो गयी
९. आयो सखि! सावन विरह सरसावन / लग्यो है बरसावन सलिल चहुँ और ते
१०. अली! नित कल्पाता है मुझे कांत हो के / जिस बिन कल पाता है नहीं कान्त मेरा
११. बसन देहु बृज में हमें बसन देहु बृजराज
शेष आप सही मैं गलत, खेद है.
एक टिप्पणी भेजें