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गुरुवार, 26 सितंबर 2013

ravindra sangeet : bhavanuvaad: manoshi, gayan: shravani sen


https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI3brembAsuLlwIkksmwhvvSOH75PfBjWU4U0Pg8-1CVHiL8AiwyVDvQCianeug7Y4D8_OjS7YbAj_fCamwuhuK1Ux8E5icTSd6cBMyuWCKMPF-zI3-EYVlDvmIGSttgkMvTRY5iNC7C0/s1600/rabindranath-tagore.jpg रवींद्र संगीत:
इस मधुर गीत को नीचे लिंक पर सुनिये- गायिका हैं - श्रावणी सेन.                  
https://www.youtube.com/watch?v=X24MveB9rpU                  
रवींद्र संगीत :  

भावानुवाद: मानोशी 

बंग्ला में 
आमारो परानो जाहा चाये
तूमी ताई, तूमी ताई गो!
तोमा छाड़ा आर जोगोते मोरा केहो नाई
किछू नाई गो!

तूमी सुख जोदी नाही पाओ
जाओ सुखेरो संधाने जाओ
आमि तोमारे पेयेछि हृदयो माझे
आर कीछू नाहि चाई गो

आमी तोमारी बीरोहे रोइबो बिलिन
तोमाते कोरीबो वास
दीर्घो दीबौशो, दीर्घ रौजौनी, दीर्घो बरौशो माश
जोदी आरो कारे भालोबाशो जोदी आर फीरे नाही आशो
तोबे तूमि जाहा चाओ ताहा जैनो पाओ
आमि जोतो दूखो पाई गो!

 मेरा प्राण जो चाहता है
तुम बस वही हो, ओ प्रिय!
तुम्हारे सिवा इस जगत में
मेरा कोई नहीं और
कुछ नहीं है, प्रिय!

तुम अगर सुख न पाओ,
तो सुख के संधान में जाओ
मैंने तो तुम्हें पाया है 
हृदय मध्य
और कुछ नहीं चाहिये, ओ प्रिय!

मैं तुम्हारे विरह में रहूँगी विलीन
तुममें ही करूँगी वास
दीर्घ दिवस, दीर्घ रजनी, दीर्घ बरस मास,
यदि किसी और से प्रेम करो
यदि और कभी न फिर सको
तब तुम जो चाहो, वही तुम्हें मिले
मैं जितने भी दुख पा लूँ, ओ प्रिय!
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