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गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

kavita: maa ka shraddh - dr. amita sharma

आज श्राद्ध का दिन है माँ

अमिता  शर्मा 

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तुम्हारी तरह आज  तुम्हारी बहू भी  सुबह अँधेरे  उठ जायेगी

ठीक तुम्हारी तरह साफ़ सुथरे चौके  को फिर से बुहारेगी

नहा  धो कर साफ़ अनछूई एक्वस्त्रा हो

तुलसी को अनछेड़ जल चढ़ायेगी

 

आज फूल द्रूब लाने को भी बेटी को नहीं कहेगी

ठाकुर जी के बर्तन भी स्वय मलेगी

ज्योती को रगड़ -रगड़ जोत सा चमकायेगी

महकते घी से लबलाबायेगी

 घर के  बने  शुद्ध घी शक्कर में लिपटा

चिड़िया  चींटी   गैया  को  हाथ से  खिलायेगी 

 

ठीक से चुने चावल  दाल को पुन पुन चुनेगी

तुम्हारी मनपसन्द कांसे  की देगची में धरेगी

तुम्हारी तरह देर तक धीमे धीमे पकायेगी

 

नए भात की महक से भर भर जायेगा घर आँगन

सारा खाना थाली में सजायेगी

कोइ देव छूट न जाएँ

ठीक तुम्हारी तरह

एक एक कर  सारे देवों को भोग लगाएगी

 

ठीक तुम्हारी तरह गाँव के हर घर का न्योता करेगी

आज  कागा  भी  श्वान भी

आगत भी   मेहमान भी

जो जो भी दिखेगा उसे मनुहार से बुलायेगी

सामर्थ  से बढ़ कर दक्षिणा  लुटायेगी

 

तुम्हारे बेटे को माँ ,वो तुम्हारी तरह ही देर तक  नहीं जगाएगी

जब सब जप तप दान दक्षिणा 

लेने देने  से अकेली निबट लेगी

तब तेरे बेटे को उठायेगी

'उठ जाओ जी! अब ग्रास बेटे के ही हाथ से लगेगा

धीरे  से कहेगी  और चुप चाप आँखे  पोछती जायेगी

 

पंडित जिमा के  पूछेगी चुपचाप

कोई कसर तो न बची, बची तो ज़रूर कहें

हमें तो वो छोड़  गये

पर स्वंय  जहाँ रहें बस सुख से रहें

 

  माँ !तो आज तुम्हारा पहला  श्राद्ध भी हो गया  !

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 Dr.Amita
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