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बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

kavya salila: aaiye kavita rachen -sanjiv

काव्य सलिला :
आइये! कविता रचें
संजीव
*
आइये! कविता रचें, मिल बात मन की हम कहें
भाव-रस की नर्मदा में सतत अवगाहन करें.
कथ्य निखरे प्रतीकों से, बिम्ब के हों नव वसन.
अलंकारों से सुसज्जित रहे कविता का कथन.
छंद-लय, गति-यति नियंत्रण शब्द सम्यक अर्थमय.
जो कहे मन वह लिखें पांडित्य का कुछ हो न भय.
ब्रम्ह अक्षर की निरंतर कर सकें आराधना.
सदय माँ शारद रहें सुत पर यही है कामना.
साधना नव सृजन की आसां नहीं, बाधा अगिन.
कभी आहत मन, कभी तन सम न होते सभी दिन.
राम जिस विधि जब रखें उपकार प्रभु का मानकर-
'सलिल' प्रक्षालन करे पग-पंक झुक-हठ ठानकर.
शीश पर छिडकें करे शीतल हरे भव ताप भी.
पैर पटकें पंक छोड़े सहज धब्बे-दाग भी.
हाथ में ले आचमन करिए मिटाए प्यास भी.
करें जैसा भरें वैसा कुछ रुदन कुछ हास भी.
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