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बुधवार, 14 मई 2014

geet: varsalya ka knbal -sanjiv

अभिनव प्रयोग:
गीत
वात्सल्य का कंबल
संजीव
*
गॉड मेरे! सुनो प्रेयर है बहुत हंबल
कोई तो दे दे हमें वात्सल्य का कंबल....
*
अब मिले सरदार सा सरदार भारत को
अ-सरदारों से नहीं अब देश गारत हो
असरदारों की जरूरत आज ज़्यादा है
करे फुलफिल किया वोटर से जो वादा है
एनिमी को पटकनी दे, फ्रेंड को फ्लॉवर
समर में भी यूँ लगे, चल रहा है शॉवर
हग करें क़ृष्णा से गंगा नर्मदा चंबल
गॉड मेरे! सुनो प्रेयर है बहुत हंबल
कोई तो दे दे हमें वात्सल्य का कंबल....
*
मनी फॉरेन में जमा यू टर्न ले आये
लाहौर से ढाका ये कंट्री एक हो जाए
दहशतों को जीत ले इस्लाम, हो इस्लाह
हेट के मन में भरो लव, ​शाह के भी शाह    
कमाई से खर्च कम हो, हो न सिर पर कर्ज
यूथ-प्रायरटी न हो मस्ती, मिटे यह मर्ज
एबिलिटी ही हो हमारा, ओनली संबल
गॉड मेरे! सुनो प्रेयर है बहुत हंबल
कोई तो दे दे हमें वात्सल्य का कंबल....
*

कलरफुल लाइफ हो, वाइफ पीसफुल हे नाथ!
राजमार्गों से मिलाये हाथ हँस फुटपाथ
रिच-पुअर को क्लोद्स पूरे गॉड! पहनाना
चर्च-मस्जिद को गले, मंदिर के लगवाना  
फ़िक्र नेचर की बने नेचर , न भूलें अर्थ 
भूल मंगल अर्थ का जाएँ न मंगल व्यर्थ
करें लेबर पर भरोसा, छोड़ दें गैंबल 
गॉड मेरे! सुनो प्रेयर है बहुत हंबल
कोई तो दे दे हमें वात्सल्य का कंबल....
*
 
 
 
 

(इस्लाम = शांति की चाह, इस्लाह = सुधार)   ​

5 टिप्‍पणियां:

anand pathak ने कहा…

anand pathak akpathak317@yahoo.co.in [ekavita]

आ0 सलिल जी
नमस्कार
आप का यह हिन्दी में ’अभिनव प्रयोग’ अच्छा लगा । यदा कदा ऐसे प्रयोग ’जायका’ बदलने के लिए ठीक रहता है मगर यह बहुत देर और बहुत दूर तक नही जाता है

”अकबर इलाहाबादी’ साहब अपने कलाम में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते थे और हास्य का पुट देते थे
ऐसा प्रयोग उर्दू शायरी में भी हो चुका है । अयोध्या प्रसाद गोयलीय ने अपनी किताब ’शे’र-ओ-सुखन’ में इसका ज़िक्र किया हैजनाब मुहम्मद रमज़ान ’रम्ज़’ने अपनी ग़ज़लों में English word का क़ाफ़िया प्रयोग करते थे और बाक़ी समूचे शे’र में उर्दू शब्द का ही प्रयोग किया है।रम्ज़ साहब छपरा [बिहार] के रहने वाले थे । मंच के पाठकों के लिए उनका एक कलाम यहाँ लगा रहा हूँ [साभार ; शे’र-ओ-सुखन--अयोध्या प्रसाद गोयलीय]आप भी लुत्फ़ अन्दोज़ होइए

उस शोख़ से है मुझको मुहब्बत भी fear भी
अरमान के हमराह निकलते हैं tear भी

किस तरह से मर जाऊँ मैं उस परदानशीं पर
आँखों से जो हैं दूर तो हैं दिल के near भी

आये हो तो दो-चार घड़ी बैठ के जाओ
हाज़िर है तुम्हारे लिए मसनद भी chair भी

इस ढंग के दिलबर तो ज़माने में बहुत हैं
इस शक्ल के इन्सान हैं दुनिया में rare भी

बेकार है उम्मीद-ए-वफ़ा अहल-ए-ज़फ़ा से
सीने की तरह चाक हुआ आज letter भी

सोज़े-ए-ग़म-ए-उल्फ़त से तो ख़ुद जलता हूँ ऎ ’रम्ज़’
और उस पे जलाती है मुझे और summer भी

क़ाफ़िया जैसा भी हो हर्फ़-ए-रवी ’r' ही रखा *:) happy

सादर

आनन्द पाठक,जयपुर
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Email akpathak3107@gmail.com

sanjiv ने कहा…

आनंद जी
छंदों पर गंभीर काम के बीच यह प्रयोग हल्का करने के लिये ही है, अन्यथा तो यह भाषा के साथ अन्याय होगा।
हिंदी और उर्दू में ऐसे प्रयोग मैने मैने भी देखे हैं.
आपको किंचित भी आनंद मिला तो सृजन सार्थक हुआ.

shriprakash shukla ने कहा…

Shriprakash Shukla wgcdrsps@gmail.com [ekavita]

आदरणीय आनंद जी,

आप बहुत बजा फरमाते हैं कि ऐसे प्रयोग चाट खाने जैसे होते है और दूर तक नहीं जाते । मुझे आचार्य जी की रचना को पढ़कर एक गीत ज़हन में आया शायद उसके भाव कुछ सन्देश दे सकें । चिंगारी जब भड़के तो सावन ---

काका हाथरसी ने एक रचना फादर के नाम से लिखी थी लेकिन उसका उपयोग हलके रूप तक ही सीमित रहा ।
फादर ने बनवा दिए चार कोट छै पैंट --------

आचार्य जी तो कुछ भी अभिनव प्रयोग कर सकते हैं और सफल भी पर कुछ प्रतिबन्ध स्वतः ही लगाने होते है । एक वैज्ञानिक परमाणु की विध्वंसक क्षमता बढ़ाने का प्रयोग विध्वंस के लिए अधिकांशतः नहीं करता ।

नव युवाओं को ऐसे प्रयोग रुचिकर होते हैं लेकिन जैसा आचार्य जी ने स्वयं कहा कि ये भाषा के साथ अन्याय होगा । मुझे पढ़कर संतोष हुआ ।

सादर

श्रीप्रकाश शुक्ल

sanjiv ने कहा…

माननीय
वन्दे भारत-भारती
'ये भाषा के साथ अन्याय होगा । मुझे पढ़कर संतोष हुआ ।' के संदर्भ में
हिंदी का हाजमा मज़बूत है. वह संस्कृत, भारतीय भाषाओँ / बोलिओं के साथ उर्दू, अंग्रेजी, जापानी, अरबी, फ़ारसी के अनेक शब्द पचा चुकी है, कभी ज्यों के त्यों कभी अपनी प्रक़ृति-अनुसार बदलकर लेकिन यह भी सच है कि है नर्मदा कितनी भी स्वच्छ हो कुछ नाले मिलने स्नानयोग्य बनी रहती है जबकि अनेक तो उसे शुद्धिकरण क़ी आवश्यकता होती है.
मेरी रचनाओं की संख्या देखते हुए ऐसे प्रयोग सीमित ही हैं.
अंग्रेजी शब्द- सामान्यतः हास्य हेतु रची गयी हैं किन्तु यह रचना सामयिक राजनैतिक संदर्भों को लेकर है. युवा पीढ़ी और अंतर्जाल 'हिंग्लिश' को अपनाया है, उन्हें यह रचना निकट प्रतीत होगी।
शिल्प दृष्टि से हिंदीतर भाषाओँ के शब्दों को उनके हिंदी में उच्चारण / हिज्जे के अनुरूप पदभार में प्रयोग किया है, मूल भाषा के उच्चारण / हिज्जे (स्पेलिंग) के अनुसार नहीं।

sanjiv ने कहा…

माननीय
वन्दे भारत-भारती
'ये भाषा के साथ अन्याय होगा । मुझे पढ़कर संतोष हुआ ।' के संदर्भ में
हिंदी का हाजमा मज़बूत है. वह संस्कृत, भारतीय भाषाओँ / बोलिओं के साथ उर्दू, अंग्रेजी, जापानी, अरबी, फ़ारसी के अनेक शब्द पचा चुकी है, कभी ज्यों के त्यों कभी अपनी प्रक़ृति-अनुसार बदलकर लेकिन यह भी सच है कि है नर्मदा कितनी भी स्वच्छ हो कुछ नाले मिलने स्नानयोग्य बनी रहती है जबकि अनेक तो उसे शुद्धिकरण क़ी आवश्यकता होती है.
मेरी रचनाओं की संख्या देखते हुए ऐसे प्रयोग सीमित ही हैं.
अंग्रेजी शब्द- सामान्यतः हास्य हेतु रची गयी हैं किन्तु यह रचना सामयिक राजनैतिक संदर्भों को लेकर है. युवा पीढ़ी और अंतर्जाल 'हिंग्लिश' को अपनाया है, उन्हें यह रचना निकट प्रतीत होगी।
शिल्प दृष्टि से हिंदीतर भाषाओँ के शब्दों को उनके हिंदी में उच्चारण / हिज्जे के अनुरूप पदभार में प्रयोग किया है, मूल भाषा के उच्चारण / हिज्जे (स्पेलिंग) के अनुसार नहीं।