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गुरुवार, 8 मई 2014

puja geet: ravindranath thakur

बाङ्ग्ला-हिंदी भाषा सेतु:

पूजा गीत

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

*

जीवन जखन छिल फूलेर मतो

पापडि ताहार छिल शत शत।

बसन्ते से हत जखन दाता

रिए दित दु-चारटि  तार पाता,

तबउ जे तार बाकि रइत कत

आज बुझि तार फल धरेछे,

ताइ हाते ताहार अधिक किछु नाइ।

हेमन्ते तार समय हल एबे

पूर्ण करे आपनाके से देबे

रसेर भारे ताइ से अवनत। 

*

पूजा गीत:  रवीन्द्रनाथ ठाकुर

हिंदी काव्यानुवाद : संजीव 



फूलों सा खिलता जब जीवन

पंखुरियां सौ-सौ झरतीं।

यह बसंत भी बनकर दाता 

रहा झराता कुछ पत्ती।

संभवतः वह आज फला है 

इसीलिये खाली हैं हाथ।

अपना सब रस करो निछावर

हे हेमंत! झुककर माथ।

*

2 टिप्‍पणियां:

Mamta Sharma ने कहा…

Mamta Sharma द्वारा yahoogroups.com
ekavita


आदरणीय संजीव जी,
अति सुन्दर! बँगला ना जानने वालों के लिये आपके गुलदस्ते का फूल अत्यन्त सुन्दर है।
धन्यवाद!
सादर ममता

sanjiv ने कहा…

उत्साहवर्धन हेतु आभार