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शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

muktak salila: sanjiv

मुक्तक सलिला:
संजीव
*
बंधन में हैं मुक्त रह
अलग-अलग संयुक्त रह.
किसको ठगता कौन है?
क्यों चुप रहे प्रयुक्त रह??
*
स्वार्थ-हवस का साथ था
जुड़े हाथ, नत माथ था.
दासी-स्वामिनी यह नहीं-
दास न वह, ना नाथ था.
*
बंधन जिन्हें न भा सका,
जो आज़ाद ख़याल थे.
बंधन टूटा, दुखी क्यों?
उत्तर बने सवाल थे.
*




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