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मंगलवार, 19 अगस्त 2014

vimarsh: nyaya pranali men netaon kee sendh

देश में आज़ादी के बाद से नेताओं और आई. ए. एस. अफसरों में अधिकार हड़पने और अधिक से अधिक मनमानी करने की होड़ है. अब तक न्यायपालिका में कुछ काम हस्तक्षेप था. अब मोदी सरकार ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता में सेंध लगा ली है. कोलेजियम सिस्टम की कुछ कमियों को दूर करने के स्थान पर नयी समिति में नेताओं को अधिक संख्या में रखा गया है. इससे सत्ताधारी दल को अपने अनुकूल न्यायाधीशों को क्रम तोड़कर सर्वोच्च न्यायालय में ले जाकर मनमाने निर्णय कर सकेगी। यह शंका निराधार नहीं है. बिना किसी बहस के सभी राजनैतिक दलों द्वारा एकमतेन बिल को पास करना 'चोर-चोर मौसेरे भाई' की लोकोक्ति को सही सिद्ध करता है? पिछले दिनों लालू यादव और अन्य नेताओं के विरुद्ध हुए निर्णयों के परिप्रेक्ष्य में सभी दल न्यायलय के पर कतरना चाहते हैं ताकि भ्रष्टाचार कर  सकें।

यह बिल ऐसे समय पास किया गया कि तुरंत बाद संसद सत्र समाप्त होने और स्वतंत्रता दिवस समीप होने से इस पर दूरदर्शन और समाचार पत्रों में भी चर्चा नहीं हुई.

सवाल यह है कि जनता कि जनता मौन क्यों है?
क्या कोलेजियम सिस्टम में बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष, ला कमीशन के चेयरमैन आदि को सम्मिलित कर सुधार नहीं किया जा सकता है?     

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