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शुक्रवार, 19 सितंबर 2014

geet: harsingar muskaye -sanjiv

 

गीत:

हरसिंगार मुस्काए


 संजीव

*
खिलखिला
यीं पल भर तुम
हरसिंगार मुस्काए 

अँखियों के पारिजात
उठें-गिरें पलक-पात
हरिचंदन देह धवल 
मंदारी मन प्रभात 
शुक्लांगी नयनों में
शेफाली शरमाए 

परजाता मन भाता 
अनकहनी कह जाता
महुआ तन महक रहा 
टेसू रंग दिखलाता
फागुन में सावन की
हो प्रतीति भरमाए 

पनघट खलिहान साथ, 
कर-कुदाल-कलश हाथ
सजनी-सिन्दूर सजा- 
कब-कैसे सजन-माथ? 
हिलमिल चाँदनी-धूप 
धूप-छाँव बन गाए
*
हरसिंगार पर्यायवाची: हरिश्रृंगार, परिजात, शेफाली, श्वेतकेसरी, हरिचन्दन, शुक्लांगी, मंदारी, परिजाता,  पविझमल्ली, सिउली, night jasmine, coral jasmine, jasminum nitidum, nycanthes arboritristis, nyclan,

4 टिप्‍पणियां:

'ksantosh_45@yahoo.co.in' ने कहा…

ksantosh_45@yahoo.co.in

आ०संजीव जी
हरसिंगार के साथ हम भी मुस्कराये. सुन्दर कविता
और हरसिंगार के पर्यावाची शब्दों के ग़्यान से कौन
न मुस्कराएगा.
चित्र पेस्ट करने की जानकारी देने के लि़ये भी आभार.

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sanjiv ने कहा…

आत्मीय
धन्यवाद
इन पुष्पों से विष्णु का श्रृंगार किया जाता है. इसलिए नाम हरिसिंगार होना चाहिए, हरिचंदन से भी इसकी पुष्टि होती है किन्तु लोक इन्हें हरसिंगार ही कहता है. शिव और वैष्णव को लोक ने एक बना दिया। रामकिंकर जी महाराज का एक ग्रन्थ है 'राम-कृष्ण' दुई एक हैं. लोक मानस ने हरिहर का पर्याय बना दिया इस पुष्प को.

achal verma achalkumar44@yahoo.com ने कहा…


achal verma achalkumar44@yahoo.com

सुन्दरतम अभिव्यक्ति की जितनी तारीफ़ हो कम है |.....अचल

Mahesh Dewedy mcdewedy@gmail.com ने कहा…

Mahesh Dewedy mcdewedy@gmail.com

सुंदर एवँ अलंकारिक .रसपूर्ण रचना. बधाई सलिल जी.

महेश चंद्र द्विवेदी