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मंगलवार, 16 सितंबर 2014

muktak: sanjiv

मुक्तक सलिला:
संजीव
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देश को प्रणाम कीजिए हँसकर
भाषा को नमन कीजिए खिलकर
आशा का कल्पवृक्ष झूमेगा
कोशिश की राह पकड़िए मिलकर
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देश-गीत गाओ तो धन्य हो
देश-प्रीत पाओ तो धन्य हो
देश-नीत है पुनीत भूल मत
देश-मीत पाओ तो धन्य हो.
*
गगन पर हस्ताक्षर करेंगे हम
पीड़ित का दर्द कम करेंगे हम
श्रम गंगा नहाकर तरेंगे हम
नित नवीन मंज़िलें वरेंगे हम
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