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सोमवार, 29 सितंबर 2014

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नवगीत:

स्वर-सरगम
जीवन का लक्ष

दीनानाथ
लुटा आशीष
कहें: लता रख
ऊँचा शीश
आशा-ऊषा
जय बोलें
कोई न हो
सकता समकक्ष

सप्त सुरों का
सुखद निवास
कंठ, शारदा
करें प्रवास   
हृदयनाथ
अधरों का हास
कोई न तुम सा
गायन-दक्ष

राज-सिंह
वंदना करे
सुर-लय-धुन
साधना वरे
थकन-पीर
स्वर मधुर हरे
तुमसे बेहतर
कोई न पक्ष

*

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