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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

रिश्ता क्या है तुमसे मेरा

तुमने मुझसे प्रश्न किया है रिश्ता क्या है तुमसे मेरा
सच पूछो तो इसी प्रश्न ने मुझको भी आ आ कर घेरा
 
तुम अपनी वैयक्तिक सीमा के खींचे घेरे में बन्दी
मैं गतिमान निरन्तर, पहिया अन्तरिक्ष तक जाते रथ का
तुम हो सहज व्याख्य निर्देशन बिन्दु बिन्दु के दिशाबोध का
लक्ष्यहीन दिग्भ्रमित हुआ मैं यायावर हूँ भूला भटका
 
तुम अंबर की शुभ्र ज्योत्सना, मैं कोटर में बन्द अँधेरा
सोच रहा हूँ मैं भी जाने तुमसे क्या है रिश्ता मेरा
 
तुम प्रवाहमय रस में डूबी, मधुशाला की एक रुबाई
मैं अतुकान्त काव्य की पंक्ति, जो रह गई बिना अनुशासन
मैं कीकर के तले ऊँघता जेठ मास का दिन अलसाया
तुम अम्बर की हो वह बदली, जो लाकर बरसाती सावन
 
तुम संध्या का नीड़, और मैं जगी भोर का उजड़ा डेरा
प्रश्न तुम्हारा कायम ही है तुमसे क्या है रिश्ता मेरा
 
लेकिन फिर भी कोई धागा, जोड़े हुए मुझे है तुमसे
हम वे पथिक पंथ टकराये हैं जिनके आ एक मोड़ पर
एक अजाना सा आकर्षण हमें परस्पर खींच रहा है
समझा नहीं, कोशिशें की हैं गुणा भाग कर घटा जोड़ कर
 
प्रश्न यही दोहराता आकर हर दिन मुझसे नया सवेरा
जो तुमने पूछा है रिश्ता क्या है तुमसे बोलो मेरा

1 टिप्पणी:

sanjiv ने कहा…

राकेश जी!
आपका स्वागत आपके अपने ब्लॉग पर. यह सरस सार्थक गीत पढ़कर मन आनंद सागर में गोते लगा रहा है. भावपूर्ण और अंतरंग अनुभूतियों से परिपूर्ण गीत हेतु ह्रदय से आभार।