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बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

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नवगीत:

डॉक्टर खुद को
खुदा समझ ले
तो मरीज़ को
राम बचाये

लेते शपथ
न उसे निभाते
रुपयों के
मुरीद बन जाते

अहंकार की
कठपुतली हैं
रोगी को
नीचा दिखलाते

करें अदेखी
दर्द-आह की
हरना पीर न
इनको भाये

अस्पताल या
बूचड़खाने?
डॉक्टर हैं
धन के दीवाने  

अड्डे हैं ये
यम-पाशों के
मँहगी औषधि
के परवाने

गैरजरूरी
होने पर भी
चीरा-फाड़ी
बेहद भाये

शंका-भ्रम
घबराहट घेरे
कहीं नहीं
राहत के फेरे

नहीं सांत्वना
नहीं दिलासा
शाम-सवेरे
सघन अँधेरे

गोली-टॉनिक
कैप्सूल दें 
आशा-दीप
न कोई जलाये

***



                 
                                                                                 

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