कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 25 नवंबर 2014

doha salila

दोहा :

सबको हितकर सृजनकर, पायें-दें आनंद
नाद-ताल-रस-भाव-लय, बिम्बित परमानंद

माया-मायापति मिलें, पा-दें शांति तलाश
नेह नर्मदा नित नहा, जीवन बने पलाश 

सुमिर कबीर कबीर के, तोड़ें माया-पाश
सबद रमैनी साखियाँ, पंक्ति-पंक्ति आकाश

रूढ़ि ढोंग आडंबरों, का हो पर्दा फाश
ज्ञान सूर्य मिल दें उगा, आत्मा सकें तराश

राम आत्म परमात्म भी, राम अनादि-अनंत
चित्र गुप्त है राम का, राम सृष्टि के कंत

विधि-हरि-हर श्री राम हैं, राम अनाहद नाद
शब्दाक्षर लय-ताल हैं, राम भाव रस स्वाद

राम नाम गुणगान से, मन होता है शांत
राम-दास बन जा 'सलिल', माया करे न भ्रांत

श्याम भाव मद-मोह का, पल में करता अंत
श्याम विराजें हृदय में, जिसके वह हो संत

श्याम ज्ञान अज्ञान तम, भक्ति अनंत उजास
राग-विराग सुहाग है, श्याम श्वास-प्रश्वास

विश्व राष्ट्र इंसानियत, पर जिसको अभिमान
सबका हित साधे सदा,जो उसका हो मान

सद्विचार सद्गुण रहे, सदा सभी को इष्ट
'सलिल' करे सतकर्म जो, उसके मिटें अनिष्ट

***
   




कोई टिप्पणी नहीं: