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मंगलवार, 18 नवंबर 2014

navgeet mahotsav 2014

नवगीत महोत्सव 2014 : दूसरा दिन
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गोमती नगर, लखनऊ के ’कालिन्दी विला’, विभूति खण्ड के परिसर में ’नवगीत महोत्सव 2014’ का दूसरा दिन आज सम्पन्न हुआ. आयोजन में देश भर से गीति-काव्य के नवगीत विधा के मूर्धन्य विद्वानों ने इस विधा की वैधानिकता तथा इसके शिल्प पर प्रकाश डाला. विधा के विभिन्न विन्दुओं को समेटते हुए प्रथम सत्र में विद्वानों ने नवगीत की दशा और दिशा, इसकी संरचना, इसके रचाव पर चर्चा की. डॉ. जगदीश व्योम ने नयी कविता तथा नवगीत के मध्य के अंतर को रेखांकित किया. रचनाओं के शिल्प में गेयता-लय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए डॉ. जगदीश व्योम ने कहा कि प्रस्तुतियों में छंदों और लय का हो गया अभाव हिन्दी रचनाओं के लिए घातक सिद्ध हुआ. कविताओं के प्रति पाठकों द्वारा बन गयी अन्यमन्स्कता का मुख्य कारण यही रहा कि कविताओं से गेयता निकल गयी. कवितायें अनावश्यक रूप से बोझिल हो गयीं. डॉ. धनन्जय सिंह की उद्घोषणा इन अर्थों में व्यापक रही कि नवगीत संज्ञा नहीं वस्तुतः विशेषण है. आपने कहा कि आजकी मुख्य आवश्यकता शास्त्र की जड़ता मुक्ति है न कि शास्त्र की गति से मुक्ति. डॉ. धनन्जय सिंह के व्याख्यान का शीर्षक ’नवगीत की दशा और दिशा’ था. ’रचना के रचाव तत्त्व’ पर बोलते हुए डॉ. पंकज परिमल ने कहा कि शब्द, तुक, लय, प्रतीक मात्र से रचना नहीं होती, बल्कि रचनाकार को रचाव की प्रक्रिया से भी गुजरना होता है. रचाव के बिना कोई भाव शाब्दिक भले हो जायें, रचना नहीं हो सकते. आपने रचना प्रक्रिया में अंतर्क्रिया तथा अंतर्वर्ण की सोदाहरण व्याख्या की. प्रथम सत्र के आज के अन्य वक्ताओं में डॉ. मधुकर अष्ठाना तथा राम सेंगर प्रमुख थे. द्वितीय दिवस का यह सत्र कार्यशाला के तौर पर आयोजित हुआ था, जिसके अंतर्गत उद्बोधनों के बाद अन्यान्य नवगीतकारों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के वक्ताओं ने समुचित उत्तर दिये. 



सहभागी नवगीतकार: 

भोजनावकाश के बाद दूसरे सत्र में विभिन्न प्रकाशनों से प्रकाशित कुल छः नवगीत-संग्रहों का लोकार्पण हुआ. जिसके उपरान्त विभिन्न विद्वानों ने समीक्षकीय चर्चा की. रोहित रूसिया के नवगीत-संग्रह ’नदी की धार सी संवेदनाएँ’ पर डॉ. गुलाब सिंह ने समीक्षा की. वरिष्ठ गीतकार डॉ. महेन्द्र भटनागर के नये संग्रह ’दृष्टि और सृष्टि’ पर बृजेश श्रीवास्तव ने समीक्षा प्रस्तुत की. ओमप्रकाश तिवारी के नवगीत-संग्रह ’खिड़कियाँ खोलो’ पर सौरभ पाण्डेय ने समीक्षा प्रस्तुत की. यश मालवीय के संग्रह ’नींद काग़ज़ की तरह’ पर निर्मल शुक्ल ने समीक्षा प्रस्तुत की. तथा, निर्मल शुक्ल के नवगीत-संग्रह ’कुछ भी असंभव’ पर मधुकर अष्ठाना ने समीक्षा प्रस्तुत की. पूर्णिमा वर्मन के नवगीत-संग्रह ’चोंच में आकाश’ पर आचार्य संजीव सलिल ने समीक्षा प्रस्तुत की. सभी समीक्षकों ने नवगीत-संगहों भाव तथा शिल्प पक्षों पर खुल कर अपनी बातें कहीं. सत्र का संचालन डॉ. अवनीश सिंह चौहान किया. 
तीसरे सत्र में आयोजन की परिपाटी के अनुसार आमंत्रित रचनाकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं का पाठ किया. इस वर्ष के आमंत्रित कवियों में चेक गणराज्य से पधारे डॉ. ज्देन्येक वग्नेर, वीरेन्द्र आस्तिक, ब्रजभूषण गौतम, शैलेन्द्र शर्मा, पंकज परिमल तथा जयराम जय थे। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश भट्ट कमल तथा चन्द्रभाल सुकुमार जी भी ने नवगीतकारों के बीच उपस्थित रहे। नवगीत पाठ के पूर्व अभिव्यक्ति-अनुभूति संस्था की ओर से कल्पना रामानी को उनके संग्रह ’हौसलों के पंख’, अवनीश सिंह चौहान को ’टुकड़ा काग़ज़ का’ तथा रोहित रूसिया को ’नदी की धार सी संवेदनाएँ’ के लिए सम्मानित तथा पुरस्कृत किया गया. विद्वानों द्वारा नवगीत विधा के बहुमुखी विकास की संभावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ ही ’नवगीत महोत्सव 2014’ का समापन हुआ।.



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